विट्ठलनाथ: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
विट्ठलनाथ (जन्म- 1515 [[वाराणसी]]; मृत्यु- 1585 गिरिराज) वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और 'अष्टछाप' के संस्थापक थे। विट्ठलनाथ [[संगीत]] और चित्रकला में भी प्रवीण थे। भक्तिपथ में जाति-पांत को नहीं मानते थे। कहते हैं, विट्ठलनाथ ने [[तानसेन]], [[रसखान]] और अछूत मोहन को भी उपदेश दिया था। | [[चित्र:Vitthalnath.jpg|thumb|विट्ठलनाथ]] | ||
'''विट्ठलनाथ''' (जन्म- 1515 [[वाराणसी]]; मृत्यु- 1585 गिरिराज) वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और 'अष्टछाप' के संस्थापक थे। विट्ठलनाथ [[संगीत]] और चित्रकला में भी प्रवीण थे। भक्तिपथ में जाति-पांत को नहीं मानते थे। कहते हैं, विट्ठलनाथ ने [[तानसेन]], [[रसखान]] और अछूत मोहन को भी उपदेश दिया था। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और '[[अष्टछाप]]' के संस्थापक विट्ठलनाथ का जन्म में वाराणसी के निकट चरवाट नामक गांव में [[पौष]] [[कृष्ण पक्ष]] [[नवमी]] को 1515 ई. हुआ था। विट्ठलनाथ पुष्टिमार्गी [[वल्लभाचार्य|आचार्य वल्लभाचार्य]] के पुत्र थे। पिता के जीवनकाल में इनकी अध्ययन के प्रति रुचि कम थी, किंतु बाद में इन्होंने गुरु माधव सरस्वती से [[वेद]]-[[वेदांत]], [[पुराण|शास्त्र पुराण]] आदि का गहन अध्ययन किया। बड़े भाई के असामयिक निधन के कारण ये संप्रदाय के गद्दी के स्वामी बने और उसे नया रूप देने में जुट गए। श्रीनाथजी के मंदिर में सेवा की नई विधि वार्षिकोत्सव आदि को इन्होंने ही आकर्षक बनाया। | वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और '[[अष्टछाप]]' के संस्थापक विट्ठलनाथ का जन्म में वाराणसी के निकट चरवाट नामक गांव में [[पौष]] [[कृष्ण पक्ष]] [[नवमी]] को 1515 ई. हुआ था। विट्ठलनाथ पुष्टिमार्गी [[वल्लभाचार्य|आचार्य वल्लभाचार्य]] के पुत्र थे। पिता के जीवनकाल में इनकी अध्ययन के प्रति रुचि कम थी, किंतु बाद में इन्होंने गुरु माधव सरस्वती से [[वेद]]-[[वेदांत]], [[पुराण|शास्त्र पुराण]] आदि का गहन अध्ययन किया। बड़े भाई के असामयिक निधन के कारण ये संप्रदाय के गद्दी के स्वामी बने और उसे नया रूप देने में जुट गए। श्रीनाथजी के मंदिर में सेवा की नई विधि वार्षिकोत्सव आदि को इन्होंने ही आकर्षक बनाया। | ||
Line 6: | Line 7: | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
विट्ठलनाथ ने गिरिराज की एक गुफा में प्रवेश करके 1585 ई. में शरीर त्याग दिया। | विट्ठलनाथ ने गिरिराज की एक गुफा में प्रवेश करके 1585 ई. में शरीर त्याग दिया। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत के संत}} | {{भारत के संत}} | ||
[[Category:हिन्दू_धर्म_प्रवर्तक_और_संत]] | [[Category:हिन्दू_धर्म_प्रवर्तक_और_संत]] | ||
[[Category:धर्म_प्रवर्तक_और_संत]] | [[Category:धर्म_प्रवर्तक_और_संत]] | ||
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] | [[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] | ||
[[Category:चरित कोश]] | [[Category:चरित कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 08:29, 11 September 2012
thumb|विट्ठलनाथ विट्ठलनाथ (जन्म- 1515 वाराणसी; मृत्यु- 1585 गिरिराज) वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और 'अष्टछाप' के संस्थापक थे। विट्ठलनाथ संगीत और चित्रकला में भी प्रवीण थे। भक्तिपथ में जाति-पांत को नहीं मानते थे। कहते हैं, विट्ठलनाथ ने तानसेन, रसखान और अछूत मोहन को भी उपदेश दिया था।
जीवन परिचय
वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक और 'अष्टछाप' के संस्थापक विट्ठलनाथ का जन्म में वाराणसी के निकट चरवाट नामक गांव में पौष कृष्ण पक्ष नवमी को 1515 ई. हुआ था। विट्ठलनाथ पुष्टिमार्गी आचार्य वल्लभाचार्य के पुत्र थे। पिता के जीवनकाल में इनकी अध्ययन के प्रति रुचि कम थी, किंतु बाद में इन्होंने गुरु माधव सरस्वती से वेद-वेदांत, शास्त्र पुराण आदि का गहन अध्ययन किया। बड़े भाई के असामयिक निधन के कारण ये संप्रदाय के गद्दी के स्वामी बने और उसे नया रूप देने में जुट गए। श्रीनाथजी के मंदिर में सेवा की नई विधि वार्षिकोत्सव आदि को इन्होंने ही आकर्षक बनाया।
स्थापना
विट्ठलनाथ अपने पिता के चार शिष्य कुंभनदास, सूरदास, परमानंद दास और कृष्णदास तथा अपने चार शिष्य चतुर्भुजदास, गोविन्द स्वामी, छीतस्वामी और नंददास को मिलाकर इन्होंने 'अष्टछाप' की स्थापना की। श्रीनाथजी के मंदिर में सेवा-पूजा के समय इन्हीं आठ के पद गाए जाते थे। विट्ठलदास के प्रभाव से ही बादशाह अकबर ने गोकुल में वानर, मोर, गाय आदि के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसने फरमान द्वारा गोकुल में माफी की भूमि भी दी थी। विट्ठल नाथ के शिष्यों में अनेक राजा-महाराजा भी सम्मिलित थे। इन्होंने जहाँ-जहाँ धार्मिक उपदेश दिए वे स्थान बैठक कहलाए। ऐसी 28 बैठकों में से 16 ब्रज क्षेत्र में है। ब्रज भाषा काव्य और गद्य में इन्होंने लगभग 50 ग्रंथों की रचना की।
मृत्यु
विट्ठलनाथ ने गिरिराज की एक गुफा में प्रवेश करके 1585 ई. में शरीर त्याग दिया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख