ईसवाल उदयपुर: Difference between revisions

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*उत्खनन से प्राप्त मृद्भाण्डों के अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास इस क्षेत्र में लोहा गलाने का कार्य आरम्भ हो गया था।
*उत्खनन से प्राप्त मृद्भाण्डों के अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास इस क्षेत्र में लोहा गलाने का कार्य आरम्भ हो गया था।
*इस समय भारतीय इतिहास में [[मगध]] [[बिहार]] साम्राज्य का निर्माण हो रहा था।  
*इस समय भारतीय इतिहास में [[मगध]] [[बिहार]] साम्राज्य का निर्माण हो रहा था।  
*इसके पश्चात् [[मौर्य साम्राज्य]] व वंश शुंग-[[कुषाण साम्राज्य|कुषाण काल]] में भी यहाँ लौहा गलाने की गतिविधियाँ संचालित थीं।  
*इसके पश्चात् [[मौर्य साम्राज्य]] व वंश शुंग-[[कुषाण साम्राज्य|कुषाण काल]] में भी यहाँ लोहा गलाने की गतिविधियाँ संचालित थीं।  
*इसकी पुष्टि यहाँ से मिले सिक्कों व मृद्भाण्डों से होती है।  
*इसकी पुष्टि यहाँ से मिले सिक्कों व मृद्भाण्डों से होती है।  
*कुछ पुरातत्त्वज्ञों ने उत्खनन से प्राप्त सिक्कों को प्रारंभिक कुषाण काल का होना स्वीकार किया है।  
*कुछ पुरातत्त्वज्ञों ने उत्खनन से प्राप्त सिक्कों को प्रारंभिक कुषाण काल का होना स्वीकार किया है।  

Latest revision as of 08:59, 3 February 2021

  • ईसवाल राजस्थान के दक्षिण में स्थित उदयपुर ज़िले की प्राचीन औद्योगिक बस्ती है, जो एक किमी लम्बे व आधा किमी चौड़े भू-भाग में फैली हुई है।
  • संवत् 1242 का अभिलेख, जो मंदिर के जीर्णोद्धार अथवा प्रतिमा स्थापना के समय लगाया गया होगा।
  • यह अभिलेख गुहिल शासक मथनसिंह का है तथा मंदिर के अधिष्ठातादेव 'वोहिगस्वामी' है।
  • इस गर्भगृह में विष्णु की प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जिसके चारों ओर चारों दिशाओं में क्रमशः गणेश, शक्ति, सूर्य तथा शिव के गौण मंदिर स्थापित हैं।
  • इन मूर्तियों की सौर पूजा में वैष्णव पूजा समावेश के स्पष्ट चिह्न दिखाई पड़ते हैं।
  • गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में सूर्य एवं विष्णु का संयुक्त विग्रह उत्कीर्ण है, जो विष्णु पूजा में सौर पूजा के समावेश को दर्शाता है।
  • देश में अपने तरीक़े की इस अलग श्रमिक बस्ती की अब तक बारह मीटर तक राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के पुरातत्त्व विभाग के तत्त्वावधान में खुदाई की जा रही है, अभी इसके तक निरंतम स्तर पर नहीं पहुँचा जा सका है।
  • यहाँ इस क्षेत्र में दो हज़ार वर्ष तक निरंतर लोहा गलाने के प्रमाण मिले हैं।
  • यहाँ पर प्रारम्भिक उत्खनन से पाँच प्रस्तरों में बस्तियों के प्रमाण मिले है, जो प्राक् ऐतिहासिक काल से मध्यकाल तक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • उत्खनन से प्राप्त भवनों के अवशेषों में रसोई के प्रमाणस्वरूप चूल्हे, संग्रह करने की चक्की तथा लाल रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
  • यहाँ मकान प्रस्तर खण्डों से निर्मित हैं, जिन्हें मिट्टी के गारे से जोड़ा गया है।
  • इस उत्खनन के दौरान लौह मल, लौह अयस्क, मिट्टी में प्रयुक्त होने वाले पाइप भी मिले हैं।
  • उत्खनन से प्राप्त मृद्भाण्डों के अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास इस क्षेत्र में लोहा गलाने का कार्य आरम्भ हो गया था।
  • इस समय भारतीय इतिहास में मगध बिहार साम्राज्य का निर्माण हो रहा था।
  • इसके पश्चात् मौर्य साम्राज्य व वंश शुंग-कुषाण काल में भी यहाँ लोहा गलाने की गतिविधियाँ संचालित थीं।
  • इसकी पुष्टि यहाँ से मिले सिक्कों व मृद्भाण्डों से होती है।
  • कुछ पुरातत्त्वज्ञों ने उत्खनन से प्राप्त सिक्कों को प्रारंभिक कुषाण काल का होना स्वीकार किया है।
  • इस उत्खनन से कतिपय हड्डियाँ भी मिली हैं, जिनमें ऊँट का दाँत महत्त्वपूर्ण है, अभी इस क्षेत्र में उत्खनन जारी है।
  • बस्ती में लौह प्रौद्योगिकी के उद्भव व विकास के और भी प्रमाण मिलने की सम्भावना है।


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