श्री धर्म मंगल जैन विद्यापीठ: Difference between revisions

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'''श्री धर्म मंगल जैन विद्यापीठ''' पूर्वी [[भारत]] के [[झारखण्ड]] राज्य में [[गिरिडीह]] शहर में स्थित है। इसकी स्थापना 1972 ई. में [[जैन]] आचार्य पद्मप्रभ सूरीश्वर जी की प्रेरणा से की गई थी। [[जैन धर्म]] में एक प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही [[सम्मेद शिखर]] और [[अयोध्या]] दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसलिए इन्हें 'अमर तीर्थ' माना गया है।


*जैन धर्म के शास्त्रों के मुताबिक जीवन में एक बार सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा करने वाला इंसान मृत्यु के बाद पशु योनि और नरक से मुक्त हो जाता है।
*जैन धर्म के शास्त्रों के मुताबिक़ जीवन में एक बार सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा करने वाला इंसान मृत्यु के बाद पशु योनि और नरक से मुक्त हो जाता है।
*यह भी कहा गया है कि 24 में से 20 [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] ने सम्मेद शिखर पर ही मोक्ष पाया था।
*यह भी कहा गया है कि 24 में से 20 [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] ने सम्मेद शिखर पर ही मोक्ष पाया था।
*सम्मेद शिखर में श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ स्थित है, जिसकी स्थापना 1972 में आचार्य श्री पद्मप्रभ सूरीश्वर जी की प्रेरणा से निर्मित हुई।
*सम्मेद शिखर में श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ स्थित है, जिसकी स्थापना 1972 में आचार्य श्री पद्मप्रभ सूरीश्वर जी की प्रेरणा से निर्मित हुई।
*यहाँ [[पूजा]]-अर्चना के लिए एक भव्य मंदिर संगमरमर के खूबसूरत पत्थरों से बना है। यहाँ 14 मंदिरों का एक विशाल समूह है।
*यहाँ [[पूजा]]-अर्चना के लिए एक भव्य मंदिर संगमरमर के ख़ूबसूरत पत्थरों से बना है। यहाँ 14 मंदिरों का एक विशाल समूह है।
*मध्य में मूलनायक शांवलिया पार्श्वनाथ का मंदिर है। इसमें शांवलिया पार्श्वनाथ की चमत्कारी मूर्ति के अलावा अन्य भगवानों की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
*मध्य में मूलनायक शांवलिया पार्श्वनाथ का मंदिर है। इसमें शांवलिया पार्श्वनाथ की चमत्कारी मूर्ति के अलावा अन्य भगवानों की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
*सम्मेद शिखर तीर्थ के रक्षक भोमियाजी का मंदिर अति-प्राचीन है, उन्हें जाग्रत देव माना गया है।
*सम्मेद शिखर तीर्थ के रक्षक भोमियाजी का मंदिर अति-प्राचीन है, उन्हें जाग्रत देव माना गया है।
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श्री धर्म मंगल जैन विद्यापीठ पूर्वी भारत के झारखण्ड राज्य में गिरिडीह शहर में स्थित है। इसकी स्थापना 1972 ई. में जैन आचार्य पद्मप्रभ सूरीश्वर जी की प्रेरणा से की गई थी। जैन धर्म में एक प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेद शिखर और अयोध्या दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसलिए इन्हें 'अमर तीर्थ' माना गया है।

  • जैन धर्म के शास्त्रों के मुताबिक़ जीवन में एक बार सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा करने वाला इंसान मृत्यु के बाद पशु योनि और नरक से मुक्त हो जाता है।
  • यह भी कहा गया है कि 24 में से 20 तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर पर ही मोक्ष पाया था।
  • सम्मेद शिखर में श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ स्थित है, जिसकी स्थापना 1972 में आचार्य श्री पद्मप्रभ सूरीश्वर जी की प्रेरणा से निर्मित हुई।
  • यहाँ पूजा-अर्चना के लिए एक भव्य मंदिर संगमरमर के ख़ूबसूरत पत्थरों से बना है। यहाँ 14 मंदिरों का एक विशाल समूह है।
  • मध्य में मूलनायक शांवलिया पार्श्वनाथ का मंदिर है। इसमें शांवलिया पार्श्वनाथ की चमत्कारी मूर्ति के अलावा अन्य भगवानों की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
  • सम्मेद शिखर तीर्थ के रक्षक भोमियाजी का मंदिर अति-प्राचीन है, उन्हें जाग्रत देव माना गया है।
  • कहा जाता है कि जो श्रद्धा भाव से मन्नत मांगता है, उसे सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 मार्च, 2012।

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