भाजा: Difference between revisions

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'''भाजा''' [[भारत]] के [[महाराष्ट्र]] में [[मुम्बई]] [[पूना]] रेलमार्ग पर मलवाणी स्टेशन के निकट स्थित है। इसका निर्माण द्वितीय शताब्दी ई.पू. में किया गया था। यह बौद्धकालीन गुफ़ाओं के लिए प्रसिद्ध है। भाजा चैत्य गृह को इस क्षेत्र का प्राचीनतम उदाहरण माना जाता है। इसके भीतर स्थापित ठोस स्तूप अत्यंत सादा है। गुफ़ाओं में मूर्ति [[कला]] के नमूने अल्प हैं।
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'''भाजा''' [[भारत]] के [[महाराष्ट्र]] में [[मुम्बई]] [[पूना]] रेलमार्ग पर मलवाणी स्टेशन के निकट स्थित है। इसका निर्माण द्वितीय शताब्दी ई.पू. में किया गया था। यह बौद्धकालीन गुफ़ाओं के लिए प्रसिद्ध है। भाजा [[चैत्य गृह]] को इस क्षेत्र का प्राचीनतम उदाहरण माना जाता है। इसके भीतर स्थापित ठोस [[स्तूप]] अत्यंत सादा है। गुफ़ाओं में मूर्ति [[कला]] के नमूने अल्प हैं।
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*भाजा में 22 गुफ़ाएँ हैं, इनमें [[चैत्य गृह]], विहार और ठोस [[स्तूप]] सम्मिलित हैं।
*भाजा का चैत्य गृह आंरभिक काल का है, जिसका निर्माणकाल 200 ई.पू. निर्धारित किया गया है।
*भाजा का चैत्य गृह आंरभिक काल का है, जिसका निर्माणकाल 200 ई.पू. निर्धारित किया गया है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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* ऐतिहासिक स्थानावली| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, पृष्ठ संख्या - 664
==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 13:44, 17 June 2013

thumb|भाजा [[चित्र:Chaitya-Griha-Bhaja-Caves.jpg|thumb|चैत्य गृह, भाजा]] भाजा भारत के महाराष्ट्र में मुम्बई पूना रेलमार्ग पर मलवाणी स्टेशन के निकट स्थित है। इसका निर्माण द्वितीय शताब्दी ई.पू. में किया गया था। यह बौद्धकालीन गुफ़ाओं के लिए प्रसिद्ध है। भाजा चैत्य गृह को इस क्षेत्र का प्राचीनतम उदाहरण माना जाता है। इसके भीतर स्थापित ठोस स्तूप अत्यंत सादा है। गुफ़ाओं में मूर्ति कला के नमूने अल्प हैं।

  • भाजा में 22 गुफ़ाएँ हैं, इनमें चैत्य गृह, विहार और ठोस स्तूप सम्मिलित हैं।
  • भाजा का चैत्य गृह आंरभिक काल का है, जिसका निर्माणकाल 200 ई.पू. निर्धारित किया गया है।
  • यहाँ का चैत्य गृह इस क्षेत्र का सबसे प्राचीन चैत्य है।
  • क्षेत्रफल के हिसाब से यह 38.25 मीटर लम्बा, 15 मीटर चौड़ा और 14,50 मीटर ऊँचा है।
  • भाजा में एक आयताकार कमरा 18 मीटर लम्बा 8,50 मीटर चौड़ा व 6,5 मीटर ऊँचा है।
  • इसके सामने बरामदा और आठ प्रकोष्ठ हैं, जो भिक्षुओं के रहने के काम आते थे।
  • इस चैत्य का गवाक्ष गोलाकार है, पाषाण खम्भे थोड़े तिरछे हैं तथा स्तूप में किसी प्रकार के अलंकरण की जानकारी नहीं मिलती।
  • इनकी भित्तियों पर पाँच मानव आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं, जिनके नीचे दानवों की प्रतिमाएँ हैं।
  • यहाँ दूसरी मूर्ति गजारूढ़ देवेन्द्र की है। यह गुहा-विहार सूर्य उपासकों द्वारा निर्मित जान पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, पृष्ठ संख्या - 664

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