चोपनी माण्डो: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:13, 16 June 2013
मध्य पाषाण से सम्बन्धित यह पुरास्थल इलाहाबाद ज़िले की मेजा तहसील में इलाहाबाद शहर से 77 किलोमीटर दूर बूढ़ी बेलन नदी के बायें तट पर है।
- इस पुरास्थल को 1967 ई. में खोजने का श्रेय बी.बी. मिश्र को है।
- यह पुरास्थल चोपनी-माण्डो विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है जिसका क्षेत्रफल 15,000 वर्ग मीटर है।
- इस पुरास्थल के सम्पूर्ण क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरण, विभिन्न प्रकार के पत्थर के टुकड़े, घिसे से हुए बटिकाश्म (पेबल) आदि बिखरे पड़े हैं।
- चोपानी माण्डो के उत्खनन से उत्तरी विन्धय क्षेत्र की मध्य पाषाणिक संस्कृति पर नया प्रकाश पड़ा है।
- चोपानी- माण्डो के उत्खनन के फलस्वरूप मध्य पाषाणकाल के तीन सांस्कृतिक उपकालों के विषय का पता चला है, यहाँ से प्रारम्भिक मध्य पाषाण काल एवं विकसित मध्य पाषाण काल का अभिज्ञान होता है।
- प्रारम्भिक मध्य पाषाण काल से गोलाकार पाँच झोपड़ियों के साक्ष्य मिले हैं।
- विकसित मध्य पाषाण काल अथवा आद्य नव पाषाणकाल से ज्यामितीय लघु पाषाण उपकरणों के साथ-साथ हस्तनिर्मित मृद्भाण्ड भी मिले हैं।
- प्रमुख उपकरणों में समानांतर तथा कुण्ठित पार्श्व वाले ब्लेड, बेधक, चान्द्रिक, त्रिभुज, विषमबाहु, समलम्ब, चतुभुर्ज, खरचनी आदि उल्लेखनीय हैं।
- चर्ट के अतिरिक्त चार्ल्सडेनी का अधिकाधिक उपयोग उपकरणों के निर्माण के लिए इस काल में किया जाने लगा था।
- इस काल की मिली झोपड़ियों में 6 गोलाकार और 7 अण्डाकार हैं। जो मृद्भाण्ड मिले हैं, ये वे अत्यंत भंगुर हैं तथा बहुत अच्छी तरह से पके हुए नहीं हैं।
- बर्तनों की मिट्टी भली-भाँति गुँथी हुई नहीं थी। छोटे-छोटे कटोरे तथा कलश प्रमुख पात्र-प्रकार हैं।
- बर्तनों में स्लिप, चमकाने तथा रंगने के साक्ष्य मिले हैं।
- यहाँ पर लाल तथा धूसर दो रंगों के मृद्भाण्ड मिले हैं।
- अनेक पात्र खण्डों में ठप्पा लगाकर सतह पर डिजाइन बनाई गई हैं।
- बर्तनों की बाहरी सतह पर फूल-पत्ती तथा शंख जैसी छाप मिलती है।
- पुरातात्विक आधार पर 1700 से 7000 ई.पू. के बीच चोपनी-माण्डो के सम्पूर्ण सांस्कृतिक जमाव की तिथि आंकी गई है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार