सब कें उर अभिलाषु: Difference between revisions

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<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : राम-राज्याभिषेक की तैयारी </h4>
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मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥
सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥4॥
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥1॥
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सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब [[महादेव|महादेवजी]] को मनाकर (प्रार्थना करके) कहते हैं कि राजा अपने जीते जी श्री [[राम|रामचन्द्रजी]] को युवराज पद दे दें॥1॥


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'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

Latest revision as of 14:35, 24 July 2016

रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : राम-राज्याभिषेक की तैयारी

सब कें उर अभिलाषु
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
दोहा

 सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥1॥

भावार्थ

सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर (प्रार्थना करके) कहते हैं कि राजा अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें॥1॥


left|30px|link=मुदित मातु सब सखीं सहेली|पीछे जाएँ सब कें उर अभिलाषु right|30px|link=एक समय सब सहित समाजा|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।



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