सब कें उर अभिलाषु: Difference between revisions
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सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु। | |||
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥1॥ | |||
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Latest revision as of 14:35, 24 July 2016
रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : राम-राज्याभिषेक की तैयारी
सब कें उर अभिलाषु
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु। |
- भावार्थ
सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर (प्रार्थना करके) कहते हैं कि राजा अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें॥1॥
left|30px|link=मुदित मातु सब सखीं सहेली|पीछे जाएँ | सब कें उर अभिलाषु | right|30px|link=एक समय सब सहित समाजा|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख