जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 37: | Line 37: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
मुनिगण जन्म-जन्म में (प्रत्येक जन्म में) (अनेकों प्रकार का) साधन करते रहते हैं। फिर भी अंतकाल में उन्हें 'राम' नहीं कह आता (उनके मुख से राम नाम नहीं निकलता)। जिनके नाम के बल से | [[मुनि|मुनिगण]] जन्म-जन्म में (प्रत्येक जन्म में) (अनेकों प्रकार का) साधन करते रहते हैं। फिर भी अंतकाल में उन्हें '[[राम]]' नहीं कह आता (उनके मुख से राम नाम नहीं निकलता)। जिनके नाम के बल से [[शंकर|शंकर जी]] [[काशी]] में सबको समान रूप से अविनाशिनी गति (मुक्ति) देते हैं॥2॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=सुनत राम अति कोमल बानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=मम लोचन गोचर सोई आवा}} | {{लेख क्रम4| पिछला=सुनत राम अति कोमल बानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=मम लोचन गोचर सोई आवा}} |
Latest revision as of 10:16, 20 May 2016
जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं॥ |
- भावार्थ
मुनिगण जन्म-जन्म में (प्रत्येक जन्म में) (अनेकों प्रकार का) साधन करते रहते हैं। फिर भी अंतकाल में उन्हें 'राम' नहीं कह आता (उनके मुख से राम नाम नहीं निकलता)। जिनके नाम के बल से शंकर जी काशी में सबको समान रूप से अविनाशिनी गति (मुक्ति) देते हैं॥2॥
left|30px|link=सुनत राम अति कोमल बानी|पीछे जाएँ | जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं | right|30px|link=मम लोचन गोचर सोई आवा|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|