जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका: Difference between revisions

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जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका। जल्पहिं कल्पित बचन अनेका॥
जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका। जल्पहिं कल्पित बचन अनेका॥
हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं। तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं॥
हरिमाया बस जगत् भ्रमाहीं। तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं॥
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जिनको निर्गुण-सगुण का कुछ भी विवेक नहीं है, जो अनेक मनगढ़ंत बातें बका करते हैं, जो हरि की माया के वश में होकर जगत में (जन्म-मृत्यु के चक्र में) भ्रमते फिरते हैं, उनके लिए कुछ भी कह डालना असंभव नहीं है।
जिनको निर्गुण-सगुण का कुछ भी विवेक नहीं है, जो अनेक मनगढ़ंत बातें बका करते हैं, जो हरि की माया के वश में होकर जगत् में (जन्म-मृत्यु के चक्र में) भ्रमते फिरते हैं, उनके लिए कुछ भी कह डालना असंभव नहीं है।


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Latest revision as of 13:52, 30 June 2017

जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

जिन्ह कें अगुन न सगुन बिबेका। जल्पहिं कल्पित बचन अनेका॥
हरिमाया बस जगत् भ्रमाहीं। तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं॥

भावार्थ-

जिनको निर्गुण-सगुण का कुछ भी विवेक नहीं है, जो अनेक मनगढ़ंत बातें बका करते हैं, जो हरि की माया के वश में होकर जगत् में (जन्म-मृत्यु के चक्र में) भ्रमते फिरते हैं, उनके लिए कुछ भी कह डालना असंभव नहीं है।


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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