देखि रूप मुनि बिरति बिसारी: Difference between revisions
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देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी॥ | |||
लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने॥ | |||
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Latest revision as of 07:19, 3 June 2016
देखि रूप मुनि बिरति बिसारी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी॥ |
- भावार्थ-
उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको भी भूल गए और हृदय में हर्षित हुए, पर प्रकट रूप में उन लक्षणों को नहीं कहा।
left|30px|link=आनि देखाई नारदहि|पीछे जाएँ | देखि रूप मुनि बिरति बिसारी | right|30px|link=जो एहि बरइ अमर सोइ होई|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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