धाइ धरे गुर चरन सरोरुह: Difference between revisions
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धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह॥ | धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह॥ | ||
भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया॥2॥ | भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया॥2॥ | ||
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Latest revision as of 05:20, 4 June 2016
धाइ धरे गुर चरन सरोरुह
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह॥ |
- भावार्थ
छोटे भाई लक्ष्मण जी सहित दौड़कर गुरुजी के चरणकमल पकड़ लिए, उनके रोम-रोम अत्यंत पुलकित हो रहे हैं। मुनिराज वशिष्ठजी ने (उठाकर) उन्हें गले लगाकर कुशल पूछी। (प्रभु ने कहा-) आप ही की दया में हमारी कुशल है॥2॥
left|30px|link=आए भरत संग सब लोगा|पीछे जाएँ | धाइ धरे गुर चरन सरोरुह | right|30px|link=सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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