दरसनु देब जानि निज दासी: Difference between revisions
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दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी॥ | दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी॥ |
Latest revision as of 05:58, 22 June 2016
दरसनु देब जानि निज दासी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी॥ |
- भावार्थ
और हमें अपनी दासी जानकर दर्शन दें। सीताजी ने उन सबको प्रेम की प्यासी देखा और मधुर वचन कह-कहकर उनका भलीभाँति संतोष किया। मानो चाँदनी ने कुमुदिनियों को खिलाकर पुष्ट कर दिया हो॥2॥
left|30px|link=पारबती सम पतिप्रिय होहू|पीछे जाएँ | दरसनु देब जानि निज दासी | right|30px|link=तबहिं लखन रघुबर रुख जानी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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