काहुहि दोसु देहु जनि ताता: Difference between revisions

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काहुहि दोसु देहु जनि ताता। भा मोहि सब बिधि बाम बिधाता॥
काहुहि दोसु देहु जनि ताता। भा मोहि सब बिधि बाम बिधाता॥
जो एतेहुँ दुख मोहि जिआवा। अजहुँ को जानइ का तेहि भावा॥4॥</poem>
जो एतेहुँ दु:ख मोहि जिआवा। अजहुँ को जानइ का तेहि भावा॥4॥</poem>
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हे तात! किसी को दोष मत दो। विधाता मेरे ‍िलए सब प्रकार से उलटा हो गया है, जो इतने दुःख पर भी मुझे जिला रहा है। अब भी कौन जानता है, उसे क्या भा रहा है?॥4॥
हे तात! किसी को दोष मत दो। विधाता मेरे ‍िलए सब प्रकार से उलटा हो गया है, जो इतने दुःख पर भी मुझे ज़िला रहा है। अब भी कौन जानता है, उसे क्या भा रहा है?॥4॥


{{लेख क्रम4| पिछला= अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= पितु आयस भूषन }}
{{लेख क्रम4| पिछला= अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= पितु आयस भूषन }}

Latest revision as of 10:47, 5 July 2017

काहुहि दोसु देहु जनि ताता
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
चौपाई

काहुहि दोसु देहु जनि ताता। भा मोहि सब बिधि बाम बिधाता॥
जो एतेहुँ दु:ख मोहि जिआवा। अजहुँ को जानइ का तेहि भावा॥4॥

भावार्थ

हे तात! किसी को दोष मत दो। विधाता मेरे ‍िलए सब प्रकार से उलटा हो गया है, जो इतने दुःख पर भी मुझे ज़िला रहा है। अब भी कौन जानता है, उसे क्या भा रहा है?॥4॥


left|30px|link=अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू|पीछे जाएँ काहुहि दोसु देहु जनि ताता right|30px|link=पितु आयस भूषन|आगे जाएँ


चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-249

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