भरत सील गुर सचिव समाजू: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:44, 7 November 2017
भरत सील गुर सचिव समाजू
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू॥ |
- भावार्थ
इधर तो भरतजी का शील (प्रेम) और उधर गुरुजनों, मंत्रियों तथा समाज की उपस्थिति! यह देखकर श्री रघुनाथजी संकोच तथा स्नेह के विशेष वशीभूत हो गए (अर्थात् भरतजी के प्रेमवश उन्हें पाँवरी देना चाहते हैं, किन्तु साथ ही गुरु आदि का संकोच भी होता है।) आखिर (भरतजी के प्रेमवश) प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने कृपा कर खड़ाऊँ दे दीं और भरतजी ने उन्हें आदरपूर्वक सिर पर धारण कर लिया॥2॥
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-312
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