User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 19: | Line 19: | ||
+[[परीक्षित]] | +[[परीक्षित]] | ||
-श्रुतकर्मा | -श्रुतकर्मा | ||
||[[उत्तरा]] को शोक करते हुए देखकर [[श्रीकृष्ण]] ने कहा- 'बेटी! शोक न करो। तुम्हारा यह पुत्र अभी जीवित होता है। मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। सबके सामने मैंने प्रतिज्ञा की है, वह अवश्य पूर्ण होगी। मैंने तुम्हारे इस बालक की रक्षा गर्भ में की है, तो भला अब कैसे मरने दूँगा।' इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक पर अपनी अमृतमयी दृष्टि डाली और बोले- 'यदि मैंने कभी झूठ नहीं बोला है, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का नियम से पालन किया है, युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई है, कभी भूल से भी अधर्म नहीं किया है, तो [[अभिमन्यु]] का यह मृत बालक जीवित हो जाये।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | |||
{[[महाभारत]] के रचयिता महर्षि [[व्यास]] के [[पिता]] कौन थे? | {[[महाभारत]] के रचयिता महर्षि [[व्यास]] के [[पिता]] कौन थे? | ||
Line 26: | Line 27: | ||
-[[दुर्वासा ऋषि|दुर्वासा]] | -[[दुर्वासा ऋषि|दुर्वासा]] | ||
+[[पराशर]] | +[[पराशर]] | ||
||'[[वेदव्यास]]' भगवान [[नारायण]] के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम [[पराशर|ऋषि पराशर]] तथा माता का नाम [[सत्यवती]] था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने [[पिता]]-[[माता]] से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी। प्रत्येक [[द्वापर युग]] में [[विष्णु]] व्यास के रूप में अवतरित होकर [[वेद|वेदों]] के विभाग प्रस्तुत करते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[व्यास]] | |||
{[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था? | {[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था? | ||
Line 33: | Line 35: | ||
-[[अम्बा]] | -[[अम्बा]] | ||
-[[देवयानी]] | -[[देवयानी]] | ||
||[[चित्र:Sanjaya-Dhritarashtra.jpg|right|100px|धृतराष्ट्र और संजय]][[वेदव्यास]] अपनी [[माता]] [[सत्यवती]] की आज्ञा मानकर बोले, 'माता! आप दोनों रानियों से कह दें कि वे एक वर्ष तक नियम व्रत का पालन करती रहें, तभी उनको गर्भ धारण होगा।' एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले रानी [[अम्बिका]] के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज़ से डरकर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौटकर [[माता]] से बोले, 'माता! अम्बिका का बड़ा ही तेजस्वी पुत्र होगा, किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा। सत्यवती को यह सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ। अत: अब उन्होंने वेदव्यास को रानी [[अम्बालिका]] के पास भेजा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धृतराष्ट्र]] | |||
{निम्न में से कौन [[निषाद]] जाति से सम्बन्धित था? | {निम्न में से कौन [[निषाद]] जाति से सम्बन्धित था? | ||
Line 40: | Line 43: | ||
-[[अंजनपर्वा]] | -[[अंजनपर्वा]] | ||
-[[सुषेण]] | -[[सुषेण]] | ||
||[[चित्र:Ekalavya.jpg|right|100px|एकलव्य और द्रोणाचार्य]]हिरण्यधनु नामक [[निषाद|निषादों]] के राजा का पुत्र [[एकलव्य]] भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से [[कौरव|कौरवों]] और [[पाण्डव|पाण्डवों]] के गुरु [[द्रोणाचार्य]] के आश्रम में आया था, किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश होकर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को ही गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनुर्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। धनुर्विद्या में वह [[अर्जुन]] से आगे न निकल जाये, इसीलिए द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका दाहिने हाथ का अंगूठा माँग लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एकलव्य]] | |||
{निम्नलिखित में से कौन [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद राजगद्दी पर बैठा? | {निम्नलिखित में से कौन [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद राजगद्दी पर बैठा? | ||
Line 47: | Line 51: | ||
-[[इरावत]] | -[[इरावत]] | ||
-[[प्रद्युम्न]] | -[[प्रद्युम्न]] | ||
||ज्योतिषियों ने [[युधिष्ठिर]] को बताया कि बालक [[परीक्षित]] अति प्रतापी, यशस्वी तथा [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] समान प्रजापालक, दानी, धर्मी, पराक्रमी और भगवान [[श्रीकृष्ण]] का [[भक्त]] होगा। एक [[ऋषि]] के शाप से [[तक्षक नाग|तक्षक]] द्वारा मृत्यु से पहले संसार के माया-मोह को त्यागकर [[गंगा]] के तट पर [[शुकदेव|शुकदेव जी]] से आत्मज्ञान प्राप्त करेगा। [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद भगवान के परम भक्त महाराज परीक्षित श्रेष्ठ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शिक्षा के अनुसार [[पृथ्वी]] का शासन करने लगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[परीक्षित]] | |||
{राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम क्या था? | {राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम क्या था? | ||
Line 61: | Line 66: | ||
-[[मगध]] | -[[मगध]] | ||
-[[वैशाली]] | -[[वैशाली]] | ||
||[[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में पाण्डवों को रखकर [[आग]] लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों [[पाण्डव]] अपनी [[माता]] [[कुन्ती]] के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से वे '[[एकचक्रा]]' नगरी में जाकर [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। उन्हीं दिनों वे [[पांचाल]] राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, चले गये। वहाँ [[अर्जुन]] के बाहुबल से 'मत्स्यभेद' होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धृतराष्ट्र]] | |||
{[[एकचक्रा]] नगरी में [[भीम]] ने किस राक्षस का वध किया था? | {[[एकचक्रा]] नगरी में [[भीम]] ने किस राक्षस का वध किया था? |
Revision as of 12:18, 19 February 2012
|