User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions
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-[[मगध]] | -[[मगध]] | ||
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||[[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में पाण्डवों को रखकर [[आग]] लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों [[पाण्डव]] अपनी [[माता]] [[कुन्ती]] के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से वे '[[एकचक्रा]]' नगरी में जाकर [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। उन्हीं दिनों वे [[पांचाल]] राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, चले गये। वहाँ [[अर्जुन]] के बाहुबल से 'मत्स्यभेद' होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[दुर्योधन]] बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। उसने लाक्षा के बने हुए घर में पाण्डवों को रखकर [[आग]] लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु पाँचों [[पाण्डव]] अपनी [[माता]] [[कुन्ती]] के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। वहाँ से वे '[[एकचक्रा]]' नगरी में जाकर [[मुनि]] के वेष में एक [[ब्राह्मण]] के घर में निवास करने लगे। उन्हीं दिनों वे [[पांचाल]] राज्य में, जहाँ [[द्रौपदी]] का स्वयंवर होने वाला था, चले गये। वहाँ [[अर्जुन]] के बाहुबल से 'मत्स्यभेद' होने पर पाँचों पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नी रूप में प्राप्त किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | ||
{[[एकचक्रा]] नगरी में [[भीम]] ने किस राक्षस का वध किया था? | {[[एकचक्रा]] नगरी में [[भीम]] ने किस राक्षस का वध किया था? | ||
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+[[अर्जुन]] ने | +[[अर्जुन]] ने | ||
-[[सहदेव]] ने | -[[सहदेव]] ने | ||
||[[महाभारत]] युद्ध में जिस समय [[भूरिश्रवा]] [[सात्यकि]] का वध करने वाला था, तभी [[अर्जुन]] ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की दायीं बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, वह यह नहीं देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर भूरिश्रवा ने अर्जुन की ओर फेंका, [[पृथ्वी]] पर माथा टेककर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भूरिश्रवा]] | |||
{निम्न में से किस अप्सरा ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दिया? | {निम्न में से किस अप्सरा ने अर्जुन को नपुंसक होने का शाप दिया? | ||
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+ग्रंथिक | +ग्रंथिक | ||
-[[कंक]] | -[[कंक]] | ||
||पांडवों को 12 वर्ष के वनवास की अवधि की समाप्ति पर एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी करना था। [[विराट नगर]] के पास पहुँचकर वे सभी एक पेड़ के नीचे बैठ गए। [[युधिष्ठिर]] ने बताया कि मैं राजा [[विराट]] के यहाँ '[[कंक]]' नाम धारण कर [[ब्राह्मण]] के वेश में आश्रय लूँगा। उन्होंने [[भीम]] से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहाँ रसोईए का काम माँग लेना, [[अर्जुन]] से उन्होंने कहा कि तुम '[[बृहन्नला]]' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को [[संगीत]] और [[नृत्य]] की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा [[नकुल]] 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा [[सहदेव]] 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना माँग ले।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहन्नला]] | |||
{[[महाभारत]] में [[कीचक]] वध किस पर्व के अंतर्गत आता है? | {[[महाभारत]] में [[कीचक]] वध किस पर्व के अंतर्गत आता है? | ||
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+9वें दिन | +9वें दिन | ||
-11वें दिन | -11वें दिन | ||
||आठवें दिन का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद [[दुर्योधन]] पितामह [[भीष्म]] के पास आया और बोला- 'पितामह!, लगता है आप जी लगाकर नहीं लड़ रहे। यदि आप भीतर-ही-भीतर [[पांडव|पांडवों]] का समर्थन कर रहे हैं तो आज्ञा दीजिए, मैं [[कर्ण]] को सेनापति बना दूँ। पितामह ने दुर्योधन से कहा- 'योद्धा अंत तक युद्ध करता है। कर्ण की वीरता तुम [[विराट नगर]] में देख चुके हो। कल के युद्ध में मैं कुछ कसर न छोडूँगा।' नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से [[अर्जुन]] भी घायल हो गए। [[कृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े और उन्हें रोका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म पर्व]] | |||
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Revision as of 12:46, 19 February 2012
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