अरस्तू: Difference between revisions
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वापस आकर अरस्तु ने अपोलो के मन्दिर के पास एक विद्यापीठ की स्थापना की, जो की 'पर्यटक विद्यापीठ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अरस्तु का बाकी जीवन यहीं पर बीता। अपने महान शिष्य सिकन्दर की मृत्यु के बाद अरस्तु ने भी विष पीकर अपनी आत्महत्या कर ली।<ref name="mcc"/> | वापस आकर अरस्तु ने [[अपोलो]] के मन्दिर के पास एक विद्यापीठ की स्थापना की, जो की 'पर्यटक विद्यापीठ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अरस्तु का बाकी जीवन यहीं पर बीता। अपने महान शिष्य सिकन्दर की मृत्यु के बाद अरस्तु ने भी विष पीकर अपनी आत्महत्या कर ली।<ref name="mcc"/> | ||
अरस्तु को [[दर्शन]], [[राजनीति]], काव्य, आचारशास्त्र, शरीर रचना, दवाइयों, ज्योतिष आदि का काफ़ी अच्छा ज्ञान था। उनके लिखे हुए [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] की संख्यां 400 तक बताई जाती है। अरस्तु राज्य को सर्वाधिक संस्था मानते थे। उनकी राज्य संस्था कृत्रिम नहीं, बल्कि प्राकृतिक थी। इसे वह मनुष्य के शरीर का अंग मानते थे और इसी आधार पर मनुष्य को प्राकृतिक प्राणी कहते थे। | अरस्तु को [[दर्शन]], [[राजनीति]], काव्य, आचारशास्त्र, शरीर रचना, दवाइयों, ज्योतिष आदि का काफ़ी अच्छा ज्ञान था। उनके लिखे हुए [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] की संख्यां 400 तक बताई जाती है। अरस्तु राज्य को सर्वाधिक संस्था मानते थे। उनकी राज्य संस्था कृत्रिम नहीं, बल्कि प्राकृतिक थी। इसे वह मनुष्य के शरीर का अंग मानते थे और इसी आधार पर मनुष्य को प्राकृतिक प्राणी कहते थे। |
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अरस्तु (384-322 ई.पू.) एक प्रसिद्ध और महान यूनानी दार्शनिक थे। उन्हें प्लेटो के सबसे मेधावी शिष्यों में गिना जाता था। विश्व विजेता कहलाने वाला सिकन्दर अरस्तु का ही शिष्य था। अरस्तु ने प्लेटो की शिष्यता 17 वर्ष की आयु में ग्रहण की थी। राजा फ़िलिप के निमंत्रण पर अरस्तु को अल्प वयस्क सिकन्दर का गुरु नियुक्त किया गया था। उन्होंने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचनाएँ की हैं।
जन्म तथा शिक्षा
अरस्तु का जन्म एथेंस के उत्तर में स्थित थ्रेस के 'स्टेगीरस' नाम के एक गाँव में हुआ था। बचपन से ही अरस्तु को जीवन शास्त्र का कुछ ज्ञान विरासत में ही मिला। अरस्तु सत्रह वर्ष की आयु में प्लेटो की अकादमी में प्रवेश लेने एथेंस आ गये और बीस वर्ष तक वहीं पर रहे। अरस्तु प्लेटो के राजनितिक दर्शन को वैज्ञानिक रूप देने वाले पहले शिष्य थे। वैसे तो प्लेटो की अकादमी के पहले हकदार अरस्तु ही थे, लेकिन विदेशी होने के कारण उन्हें यह गौरव प्राप्त नहीं हो सका। अरस्तु प्लेटो की मंडली के सबसे बुद्धिमान और मेधावी युवकों में से एक थे। जब उनके गुरु की मृत्यु हो गयी, तब उन्होंने दु:खी होकर एथेंस को छोड़ दिया।[1]
सिकन्दर के गुरु
एथेंस को छोड़ने के बाद अरस्तु एशिया माइनर के एसस नगर में चले आये और वहाँ पर एक अकादमी की स्थापना की। यहीं पर हर्मियस की दूसरी बेटी पीथीयस से उनका विवाह हो गया। लगभग 343 ईसा पूर्व मैसीडोनिया के शासक फ़िलिप के निमन्त्रण पर सिकन्दर को शिक्षा देने के लिए उनकी राजधानी पेला आये और 7 वर्ष बाद प्रचुर धन अपने साथ लेकर वापस एथेंस आ गये।
मृत्यु
वापस आकर अरस्तु ने अपोलो के मन्दिर के पास एक विद्यापीठ की स्थापना की, जो की 'पर्यटक विद्यापीठ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अरस्तु का बाकी जीवन यहीं पर बीता। अपने महान शिष्य सिकन्दर की मृत्यु के बाद अरस्तु ने भी विष पीकर अपनी आत्महत्या कर ली।[1]
अरस्तु को दर्शन, राजनीति, काव्य, आचारशास्त्र, शरीर रचना, दवाइयों, ज्योतिष आदि का काफ़ी अच्छा ज्ञान था। उनके लिखे हुए ग्रन्थों की संख्यां 400 तक बताई जाती है। अरस्तु राज्य को सर्वाधिक संस्था मानते थे। उनकी राज्य संस्था कृत्रिम नहीं, बल्कि प्राकृतिक थी। इसे वह मनुष्य के शरीर का अंग मानते थे और इसी आधार पर मनुष्य को प्राकृतिक प्राणी कहते थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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