जलवायु परिवर्तन सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " जिम्मेदार" to " ज़िम्मेदार") |
No edit summary |
||
Line 17: | Line 17: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पर्यावरण}} | |||
[[Category:पर्यावरण और जलवायु]] | [[Category:पर्यावरण और जलवायु]] | ||
[[Category:अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन]] | [[Category:अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन]] |
Revision as of 06:58, 9 July 2012
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
3-14 दिसम्बर, 2007 तक इणेनेशिया के बाली द्वीप में नूसादुआ में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में जलवायु परिवर्तन संबंधी वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में 190 देशों के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों व सामाजिक कार्यकताओं ने भाग लिया। आस्ट्रेलिया, जिसकी पूर्ववर्ती कंजरवेटिव सरकार ने इस सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा कर रखी थी, ने भी सम्मेलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आस्ट्रेलिया के नवनियुक्त प्रधानमंत्री केविन रूड स्वयं इस सम्मेलन को संबोधित करने वालों में शामिल थे। इससे पूर्व उन्होने 3 दिसम्बर, 2004 को कार्यभार संभालते ही क्योटों संधि पर हस्ताक्षर कर दिये थे।
बाली सम्मेलन का उद्देश्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर कटौती के मामले में विश्वव्यापी सहमति बनाना है। सम्मेलन का आयोजन 1979 में बनी क्योटो संधि से आगे की रणनीति बनाने के लिए किया गया। इस संधि के तहत इन 36 औद्योगिक देशों को 2008 तक ग्रीन हाउस गैंसों में उत्सर्जन का स्तर क्रमशः घटाते हुए 1990 के स्तर तक लाने की ज़िम्मेदारी है। सम्मेलन में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती हेंतु एक रोडमैप तैयार किया गया है। इस रोडमैप के अनुसार वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को रोकने हेतु ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना आवश्यक है तथा इसके लिए विश्व के विकसित तथा विकासशील देशों को अतिशीघ्र एक संधि पर सहमत होना होगा। इस भावी संधि के रूपरेखा तैयार करने के लिए 2009 तक की समय सीमा निर्धारित की गई है। वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में होने वाले अगले शिखर सम्मेलन में इस संधि पर हस्ताक्षर किये जायेंगें। यह संधि क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लेगी। इस संधि को 2013 से लागू किया जाना आवश्यक होगा। इस नई संधि में सभी देशों के लिए यह दिशा-निर्देश होगा कि वो 2020 तक 1990 के स्तर पर ग्रीन हाउस गैंसों के उत्सर्जन में 25-40 प्रतिशत तक की कटौती करेगा। इस रोडमैप में संयुक्त राज्य अमरीका, भारत तथा चीन जैसे देशों ने भी बातचीत में सम्मिलित होने तथा नई ज़िम्मेदारियों को वहन करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की चौथी रिपोर्ट
17 नवम्बर, 2007 को स्पेन के वैलेंसिया में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्सरकारी दल ने अपनी चौथी रिपोर्ट को स्वीकृत प्रदान की। भारत के आर.के. पचैरी की अध्यक्षता वाले इस दल को ही वर्ष 2007 का नोबेल शांति पुरस्कार पूर्व अमेरिका उपराष्ट्रपति अलगोर के साथ्ज्ञ संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था। पर्यावरण संबंधी दल की यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महासचिव वान की-मून को सौंपी गई जिसे उन्होने दिसम्बर, 2007 में बसली में आयोजित अंतराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में औपचारिक रूप से प्रस्तुत किया।
130 देशों के वैज्ञानिकों के संगठन आईपीसीसी की इस चौथी रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि -
- ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव अब परिलक्षित होने लगे हैं, जो इस सदी में इतनी गंभीर होंगें कि इनमें सुधार की संभावना नहीं रहेगी। रिपोर्ट में पूर्वनुमान लगाया गया है कि 2100 तक विश्व की सतह का औसत तापमान 1980-99 के दौराने रहे औसत तापमान की तुलना में 1.10 सें.(1.91°F) से 6.40 सें. (11.52°F) तक बढ़ जायेगा, जबकि समुद्र तल 18 से 59 सेमी तक ऊंचा उठेगा।
- 2050 तक ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को 1990 के स्तर से कम से कम आधे पर लाना आवश्यक होगा, जिससे धरती का तापमान पूर्व औद्योगिक काल के तापमान से 20 सें. से अधिक न हो सके।
- किसी भी स्थिति में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा 450 पीपीएम कार्बन डाई आक्साइड समतुल्य से अधिक नहीं होनी चाहिए। उसे आगामी 15 वर्षा के भीतर 400 पीपीएम सी.ओ.टू. समतुल्य तक घटना होना।
- औसत तापमान को स्थिर करने के लिए देशों को ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को घटाने हेतु अपने सकत घरेलू उत्पाद के 5.5 तक का त्याग करना होगा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख