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|पद=पूर्व मुख्यमंत्री (महाराष्ट्र), ऊर्जा मंत्री, गृहमंत्री।
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|शिक्षा=कानून डिग्री
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Revision as of 05:07, 30 March 2016

नवनीत6
पूरा नाम सुशील कुमार सांभाजीराव शिंदे
अन्य नाम सुशील कुमार शिंदे
जन्म 4 सितम्बर 1941
जन्म भूमि शोलापुर, महाराष्ट्र
पति/पत्नी उज्जवला शिंदे
संतान तीन बेटियां
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी कांग्रेस
पद पूर्व मुख्यमंत्री (महाराष्ट्र), ऊर्जा मंत्री, गृहमंत्री।
शिक्षा कानून डिग्री
विद्यालय शिवाजी यूनिवर्सिटी
भाषा हिन्दी
अन्य जानकारी शिंदे महाराष्ट्र के मुख्‍यमंत्री बनने वाले पहले दलित नेता हैं।

सुशील कुमार सांभाजीराव शिंदे (अंग्रेज़ी:Sushilkumar Sambhajirao Shinde, जन्म: 4 सितम्बर 1941) एक राजनीतिज्ञ हैं, जो कि महाराष्ट्र से हैं। वे मनमोहन सिंह सरकार में गृहमंत्री थे। इसके अलावा वे लोकसभा में कांग्रेस के नेता भी हैं। यह पद हासिल करने वाले वे पहले दलित नेता हैं और इससे पहले प्रणब मुखर्जी इस पद पर थे।

जन्म तथा शिक्षा

शिंदे का जन्म 4 सितम्बर 1941 को महाराष्ट्र के शोलापुर में हुआ था। उन्होंने दयानंद कॉलेज, शोलापुर से आर्ट्‍स में ऑनर्स डिग्री ली थी और बाद में शिवाजी यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री भी हासिल की। शिंदे ने अपना करियर शोलापुर सेशन कोर्ट में एक नाजिर के तौर पर शुरू किया था लेकिन बाद में वे राज्य पुलिस में सब इंस्पेक्टर बन गए। शिंदे महाराष्ट्र के मुख्‍यमंत्री बनने वाले पहले दलित नेता हैं।

राजनिति में प्रवेश

शरद पवार के आग्रह पर वे पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आ गए थे। शोलापुर जिले के करमाला से उन्होंने पहली बार विधानसभा का उप चुनाव लड़ा और जीत गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीपी नाईक ने उन्हें अपनी सरकार में जूनियर मंत्री बनाया था। बाद में वे फिर से कांग्रेस में आए और नए वसंतराव पाटिल मंत्रीमंडल में वित्तमंत्री बने। वर्ष 1978 से 1990 तक वे राज्य विधानसभा के लिए चुनाव जीतते रहे। जुलाई 1992 में वे राज्य से राज्यसभा के लिए चुने गए। वर्ष 2002 में उन्होंने राजग के प्रत्याशी भैरोंसिंह शेखावत के खिलाफ उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में वे आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बना दिए गए, लेकिन एक वर्ष बाद ही उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। 2006 में फिर एक बार राज्यसभा में चुनकर आए और प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद लोकसभा में कांग्रेस के नेता बनाए गए।

कार्यकाल

सुशील कुमार शिंदे 2006 से 2012 तक उर्जा मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में जब उत्तरी भारत का पावर ग्रिड फेल हो गया तो लोगों ने उनकी आलोचना की। इस पर उनका उत्तर था कि अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों में ‍भी ग्रिड फेल हो जाते हैं। वे इसके पहले और बाद में भी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए जाने जाते रहे हैं। पुणे में उन्होंने कहा था कि बोफोर्स घोटाले की तरह से लोग कोलगेट घोटाला भी भूल जाएंगे। शिंदे वर्ष 2012 में भारत के गृहमंत्री बनाए गए थे।

वैवाहिक जीवन

इनका विवाह उज्जवला शिंदे के साथ हुआ है। सुशील कुमार शिंदे की दम्पति की तीन बेटियां हैं। उनकी एक बेटी प्रणीति शिंदे शोलापुर से विधायक हैं। शिंदे सब इंस्पेक्टर से गृहमंत्री तक बुधवार, 1 अगस्त, 2012 को 16:56 IST तक के समाचार शिंदे को दस जनपथ का विश्वासपात्र माना जाता है। सुशील कुमार शिंदे के रूप में भारत को नया गृहमंत्री मिल गया है, एक समय महाराष्ट्र में सीआईडी के सब-इंस्पेक्टर के रुप में काम करने वाले शिंदे अब देश भर में क़ानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार हैं।

गृहमंत्री के रूप में

उनका कहना है कि उन्होंने ये कल्पना कभी नहीं की थी कि वे एक दिन देश के गृहमंत्री बनेंगे। उनका कहना है कि ये लोकतंत्र की वजह से संभव हुआ है। इसके लिए ये मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को धन्यवाद देते हैं। इससे पहले वो ऊर्जा मंत्री हुआ करते थे और मंगलवार को जब उनको पदोन्नत कर गृहमंत्री बनाया गया तब देश का आधे से ज़्यादा हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। उत्तरी, पूर्वी और पूर्वोत्तर पॉवर ग्रिड के फेल हो जाने से सैकड़ों ट्रेनें यहाँ वहाँ अटकी हुई थीं और औद्योगिक उत्पादन ठप पड़ा हुआ था। मीडिया में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस निर्णय की जमकर आलोचना हुई है कि ऐसे दिन में जब उन्हें पॉवर ग्रिड फेल होने के लिए जवाबदेह माना जाना था, उन्हें पदोन्नत कर दिया गया।

व्यक्तित्त्व

इस पदोन्नति के साथ सुशील कुमार शिंदे सरकार के सबसे महत्वपूर्ण और ताक़तवर मंत्रियों में से एक हैं। यह भी संयोग है कि उनको सब-इंस्पेक्टर के पद से इस्तीफ़ा दिलवाकर 1971 में राजनीति में लाने वाले शरद पवार केंद्र में मंत्री तो हैं लेकिन उनका कृषि मंत्री का ओहदा उतना ताक़तवर नहीं है। शिंदे कांग्रेस के लो-प्रोफ़ाइल नेता माने जाते हैं। महाराष्ट्र के शोलापुर में वर्ष 1941 में एक दलित परिवार में जन्में शिंदे के पास आर्ट्स की ऑनर्स डिग्री और कॉनून की डिग्री है। वर्ष 1965 तक वे शोलापुर की अदालत में वकालत करते रहे फिर पुलिस में भर्ती हो गए। पाँच साल तक पुलिस की नौकरी करने के बाद राजनीति में आ गए। पाँच बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए और राज्यमंत्री से लेकर वित्तमंत्री और मुख्यमंत्री तक हर पद पर रहे। एक बार महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1992 में उन्हें पार्टी ने राज्यसभा में भेजने का निर्णय लिया। यहाँ उन्हें सोनिया गांधी के नज़दीक जाने का मौक़ा मिला और इसी की वजह से 1999 में उन्हें अमेठी में सोनिया गांधी का प्रचार संभालने का मौक़ा मिला। 1999 में वे लोकसभा के लिए चुने गए फिर सोनिया गांधी के निर्देश पर वर्ष 2002 में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत के ख़िलाफ़ उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और हार गए। जब केंद्र में 2004 में जब यूपीए की सरकार आई तो उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा गया लेकिन एक साल बीतते बीतते उन्होंने यह पद भी छोड़ दिया। 2006 में वो एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बने और फिर ऊर्जा मंत्री 2009 में चुनाव में दूसरी बार ऊर्जा मंत्री बनाए गए और 31 जुलाई, 2012 को गृहमंत्री। गृहमंत्री के रूप में उनके सामने ढेर सारी चुनौतियाँ होंगी लेकिन ऊर्जा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को बिना किसी उपलब्धि के कार्यकाल के रुप में याद किया जाएगा, जो ऐसे समय में ख़त्म हुआ जब मंत्रालय अपने इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रहा था।


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