कहि न जाइ कछु नगर बिभूती: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
Line 38: Line 38:


;भावार्थ
;भावार्थ
नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥   
नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी [[राम|श्री रामचन्द्रजी]] के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥   


{{लेख क्रम4| पिछला=रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=मुदित मातु सब सखीं सहेली}}
{{लेख क्रम4| पिछला=रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=मुदित मातु सब सखीं सहेली}}

Latest revision as of 12:16, 15 May 2016

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥3॥

भावार्थ

नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥


left|30px|link=रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई|पीछे जाएँ कहि न जाइ कछु नगर बिभूती right|30px|link=मुदित मातु सब सखीं सहेली|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख