अवलोकि खरतर तीर: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:22, 24 May 2016
अवलोकि खरतर तीर
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
अवलोकि खरतर तीर। मुरि चले निसिचर बीर॥ |
- भावार्थ
अत्यन्त तीक्ष्ण बाणों को देखकर राक्षस वीर पीठ दिखाकर भाग चले। तब खर-दूषण और त्रिशिरा तीनों भाई क्रुद्ध होकर बोले- जो रण से भागकर जाएगा,॥2॥
left|30px|link=तब चले बान कराल|पीछे जाएँ | अवलोकि खरतर तीर | right|30px|link=तेहि बधब हम निज पानि|आगे जाएँ |
छन्द- छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख