सुनहु राम स्वामी: Difference between revisions
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Latest revision as of 10:14, 20 May 2016
सुनहु राम स्वामी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि। |
- भावार्थ
(बालि ने कहा-) हे श्री राम जी! सुनिए, स्वामी (आप) से मेरी चतुराई नहीं चल सकती। हे प्रभो! अंतकाल में आपकी गति (शरण) पाकर मैं अब भी पापी ही रहा?नहीं होता॥4॥
left|30px|link=मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना|पीछे जाएँ | सुनहु राम स्वामी | right|30px|link=सुनत राम अति कोमल बानी|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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