बिपति बीजु बरषा रितु चेरी: Difference between revisions
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बिपति बीजु बरषा रितु चेरी। भुइँ भइ कुमति कैकई केरी॥ | बिपति बीजु बरषा रितु चेरी। भुइँ भइ कुमति कैकई केरी॥ | ||
पाइ कपट जलु अंकुर जामा। बर दोउ दल | पाइ कपट जलु अंकुर जामा। बर दोउ दल दु:ख फल परिनामा॥3॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:00, 2 June 2017
बिपति बीजु बरषा रितु चेरी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
बिपति बीजु बरषा रितु चेरी। भुइँ भइ कुमति कैकई केरी॥ |
- भावार्थ
विपत्ति (कलह) बीज है, दासी वर्षा ऋतु है, कैकेयी की कुबुद्धि (उस बीज के बोने के लिए) जमीन हो गई। उसमें कपट रूपी जल पाकर अंकुर फूट निकला। दोनों वरदान उस अंकुर के दो पत्ते हैं और अंत में इसके दुःख रूपी फल होगा॥3॥
left|30px|link=जौं बिधि पुरब मनोरथु काली|पीछे जाएँ | बिपति बीजु बरषा रितु चेरी | right|30px|link=कोप समाजु साजि सबु सोई|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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