मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
 
Line 39: Line 39:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ
;भावार्थ
अतएव मेरे [[हृदय]] में ऐसा पक्का भरोसा है कि [[राम|श्री राम जी]] अवश्य मिलेंगे, (क्योंकि) मुझे शकुन बड़े शुभ हो रहे हैं, किंतु अवधि बीत जाने पर यदि मेरे प्राण रह गए तो जगत में मेरे समान नीच कौन होगा? ॥4॥  
अतएव मेरे [[हृदय]] में ऐसा पक्का भरोसा है कि [[राम|श्री राम जी]] अवश्य मिलेंगे, (क्योंकि) मुझे शकुन बड़े शुभ हो रहे हैं, किंतु अवधि बीत जाने पर यदि मेरे प्राण रह गए तो जगत् में मेरे समान नीच कौन होगा? ॥4॥  
{{लेख क्रम4| पिछला=जौं करनी समुझै प्रभु मोरी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= राम बिरह सागर महँ}}
{{लेख क्रम4| पिछला=जौं करनी समुझै प्रभु मोरी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= राम बिरह सागर महँ}}



Latest revision as of 13:53, 30 June 2017

मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
चौपाई

मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई॥
बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना॥4॥

भावार्थ

अतएव मेरे हृदय में ऐसा पक्का भरोसा है कि श्री राम जी अवश्य मिलेंगे, (क्योंकि) मुझे शकुन बड़े शुभ हो रहे हैं, किंतु अवधि बीत जाने पर यदि मेरे प्राण रह गए तो जगत् में मेरे समान नीच कौन होगा? ॥4॥


left|30px|link=जौं करनी समुझै प्रभु मोरी|पीछे जाएँ मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई right|30px|link=राम बिरह सागर महँ|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख