बारहिं बार जोरि जुग पानी: Difference between revisions

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;चौपाई
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मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दुख दीन।
बारहिं बार जोरि जुग पानी। कहत रामु सब सन मृदु बानी॥
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन॥80॥</poem
सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जेहि तें रहै भुआल सुखारी॥4॥</poem>
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;भावार्थ
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हे परम चतुर पुरवासी सज्जनों! आप लोग सब वही उपाए कीजिएगा, जिससे मेरी सब माताएँ मेरे विरह के दुःख से दुःखी न हों॥80॥
श्री [[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] बार-बार दोनों हाथ जोड़कर सबसे कोमल वाणी कहते हैं कि मेरा सब प्रकार से हितकारी मित्र वही होगा, जिसकी चेष्टा से महाराज सुखी रहें॥4॥


{{लेख क्रम4| पिछला=दासीं दास बोलाइ बहोरी|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=  एहि बिधि राम सबहि समुझावा}}
{{लेख क्रम4| पिछला= दासीं दास बोलाइ बहोरी|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=  मातु सकल मोरे बिरहँवा}}





Latest revision as of 08:20, 11 June 2016

बारहिं बार जोरि जुग पानी
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

बारहिं बार जोरि जुग पानी। कहत रामु सब सन मृदु बानी॥
सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जेहि तें रहै भुआल सुखारी॥4॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी बार-बार दोनों हाथ जोड़कर सबसे कोमल वाणी कहते हैं कि मेरा सब प्रकार से हितकारी मित्र वही होगा, जिसकी चेष्टा से महाराज सुखी रहें॥4॥


left|30px|link=दासीं दास बोलाइ बहोरी|पीछे जाएँ बारहिं बार जोरि जुग पानी right|30px|link=मातु सकल मोरे बिरहँवा|आगे जाएँ


चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।




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