अब बिलंबु केह कारन कीजे: Difference between revisions
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अब | अब विलम्ब किस कारण किया जाए। वानरों को तुरंत आज्ञा दो। (भगवान की) यह लीला (रावणवध की तैयारी) देखकर, बहुत से फूल बरसाकर और हर्षित होकर देवता आकाश से अपने-अपने लोक को चले॥4॥ | ||
Latest revision as of 09:06, 10 February 2021
अब बिलंबु केह कारन कीजे
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
अब बिलंबु केह कारन कीजे। तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥ |
- भावार्थ
अब विलम्ब किस कारण किया जाए। वानरों को तुरंत आज्ञा दो। (भगवान की) यह लीला (रावणवध की तैयारी) देखकर, बहुत से फूल बरसाकर और हर्षित होकर देवता आकाश से अपने-अपने लोक को चले॥4॥
left|30px|link=सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा|पीछे जाएँ | अब बिलंबु केह कारन कीजे | right|30px|link=कपिपति बेगि बोलाए|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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