बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:42, 1 September 2017
बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा। देखत छोट खोट नृपु ढोटा॥ |
- भावार्थ-
इसको शीघ्र ही आँखों की ओट क्यों नहीं करते? यह राजपूत्र देखने में छोटा है, पर है बड़ा खोटा। लक्ष्मण ने हँसकर मन-ही-मन कहा - आँख मूँद लेने पर कहीं कोई नहीं है।
left|30px|link=जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता|पीछे जाएँ | बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा | right|30px|link=परसुरामु तब राम प्रति|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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