सीय बिलोकि धीरता भागी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
सपना वर्मा (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
||
Line 39: | Line 39: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ- | ;भावार्थ- | ||
वे परम वैराग्यवान कहलाते थे; पर सीता को देखकर उनका भी धीरज भाग गया। राजा ने जानकी को हृदय से लगा लिया। (प्रेम के प्रभाव से) ज्ञान की | वे परम वैराग्यवान कहलाते थे; पर सीता को देखकर उनका भी धीरज भाग गया। राजा ने जानकी को हृदय से लगा लिया। (प्रेम के प्रभाव से) ज्ञान की महान् मर्यादा मिट गई (ज्ञान का बाँध टूट गया)। | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=भए बिकल खग मृग एहि भाँती |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=समुझावत सब सचिव सयाने}} | {{लेख क्रम4| पिछला=भए बिकल खग मृग एहि भाँती |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=समुझावत सब सचिव सयाने}} |
Latest revision as of 11:02, 1 August 2017
सीय बिलोकि धीरता भागी
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी॥ |
- भावार्थ-
वे परम वैराग्यवान कहलाते थे; पर सीता को देखकर उनका भी धीरज भाग गया। राजा ने जानकी को हृदय से लगा लिया। (प्रेम के प्रभाव से) ज्ञान की महान् मर्यादा मिट गई (ज्ञान का बाँध टूट गया)।
left|30px|link=भए बिकल खग मृग एहि भाँती|पीछे जाएँ | सीय बिलोकि धीरता भागी | right|30px|link=समुझावत सब सचिव सयाने|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (बालकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-169
संबंधित लेख