सो सठु कोटिक पुरुष समेता: Difference between revisions
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अहि अघ अवगुन नहिं मनि गहई। हरइ गरल | अहि अघ अवगुन नहिं मनि गहई। हरइ गरल दु:ख दारिद दहई॥4॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:10, 2 June 2017
सो सठु कोटिक पुरुष समेता
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
सो सठु कोटिक पुरुष समेता। बसिहि कलप सत नरक निकेता॥ |
- भावार्थ
वह दुष्ट करोड़ों पुरखों सहित सौ कल्पों तक नरक के घर में निवास करेगा। साँप के पाप और अवगुण को मणि नहीं ग्रहण करती, बल्कि वह विष को हर लेती है और दुःख तथा दरिद्रता को भस्म कर देती है॥4॥
left|30px|link=तात भरत अस काहे न कहहू|पीछे जाएँ | सो सठु कोटिक पुरुष समेता | right|30px|link=अवसि चलिअ बन रामु|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-256
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