पति देवता सुतीय मनि: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कविता भाटिया (talk | contribs) No edit summary |
कविता भाटिया (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 33: | Line 33: | ||
}} | }} | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem | <poem> | ||
;चौपाई | ;चौपाई | ||
पति देवता सुतीय मनि सीय साँथरी देखि। | पति देवता सुतीय मनि सीय साँथरी देखि। |
Revision as of 08:20, 19 July 2016
पति देवता सुतीय मनि
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित ले | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
पति देवता सुतीय मनि सीय साँथरी देखि। |
- भावार्थ
उन श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियों में शिरोमणि सीताजी की साथरी (कुश शय्या) देखकर मेरा हृदय हहराकर (दहलकर) फट नहीं जाता, हे शंकर! यह वज्र से भी अधिक कठोर है!॥199॥
left|30px|link=ससुर भानुकुल भानु भुआलू|पीछे जाएँ | पति देवता सुतीय मनि | right|30px|link=लालन जोगु लखन लघु लोने|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-262
संबंधित लेख