आर.एन. माधोलकर: Difference between revisions

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'''राव बहादुर रघुनाथ नरसिंह माधोलकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raghunath Narasinha Mudholkar'', जन्म: [[16 मई]], [[1857]]; मृत्यु: [[13 जनवरी]], [[1921]]) भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने एक अवधि तक भारतीय [[कांग्रेस|राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वो पंडित [[बिशन नारायण धर]] के पद पर रहे। उन्होंने [[1912]] में ([[पटना]]) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 27 वें सत्र की अध्यक्षता की।  
'''राव बहादुर रघुनाथ नरसिंह माधोलकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raghunath Narasinha Mudholkar'', जन्म: [[16 मई]], [[1857]]; मृत्यु: [[13 जनवरी]], [[1921]]) भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने एक अवधि तक भारतीय [[कांग्रेस|राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वो पंडित [[बिशन नारायण धर]] के पद पर रहे। उन्होंने [[1912]] में ([[पटना]]) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 27 वें सत्र की अध्यक्षता की।  
==परिचय==
==परिचय==
आर.एन. माधोलकर का जन्म [[खानदेश|धूलेिया, खानदेश]] में 16 मई 1857 को एक मध्यमवर्गीय [[परिवार]] में हुआ था। आंशिक रूप से उन्हें धूलिया में और आंशिक रूप से [[विदर्भ]] में शिक्षा मिली थी। फिर वह मुम्बई चले गए और वहाँ एलफिंस्टोन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां उन्हें फेलोशिप दी गई। वह [[अमरावती]] में जी. एस. खापर्दे और मोरोपंत. वी. जोशी के साथ वकालत कर रहे थे। उनके पुत्र जनार्दन ने [[1960]]-1966 के दौरान [[भारत]] के सर्वोच्च न्यायालय में [[भारत के मुख्य न्यायाधीश|न्यायाधीश]] बने।
आर.एन. माधोलकर का जन्म [[खानदेश|धूलेिया, खानदेश]] में 16 मई 1857 को एक मध्यमवर्गीय [[परिवार]] में हुआ था। आंशिक रूप से उन्हें धूलिया में और आंशिक रूप से [[विदर्भ]] में शिक्षा मिली थी। फिर वह मुम्बई चले गए और वहाँ एलफिंस्टोन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां उन्हें फेलोशिप दी गई। वह [[अमरावती]] में जी. एस. खापर्दे और मोरोपंत. वी. जोशी के साथ वकालत कर रहे थे। उनके पुत्र जनार्दन ने [[1960]] से [[1966]] के दौरान [[भारत]] के सर्वोच्च न्यायालय में [[भारत के मुख्य न्यायाधीश|न्यायाधीश]] बने।
==समाज सुधारक==
==समाज सुधारक==
आर.एन. माधोलकर को [[जनवरी]], [[1914]] में उनकी सार्वजनिक सेवाओं के सम्मान में उन्हें भारतीय साम्राज्य का संयोजक बनाया गया था। वह एक धर्माधिकारी [[हिंदू]] थे। महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और अस्पृश्यता को हटाने जैसे सामाजिक सुधारों की उन्होंने वकालत की। [[गोपाल कृष्ण गोखले]] के अनुयायी के रूप में, उनका मानना ​​था कि विकासशील राष्ट्रवाद को ब्रिटिश सहयोग की आवश्यकता है और इसलिए राष्ट्रीय आंदोलन संवैधानिक और अहिंसक होना चाहिए।  
आर.एन. माधोलकर को [[जनवरी]], [[1914]] में उनकी सार्वजनिक सेवाओं के सम्मान में उन्हें भारतीय साम्राज्य का संयोजक बनाया गया था। वह एक धर्माधिकारी [[हिंदू]] थे। महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और अस्पृश्यता को हटाने जैसे सामाजिक सुधारों की उन्होंने वकालत की। [[गोपाल कृष्ण गोखले]] के अनुयायी के रूप में, उनका मानना ​​था कि विकासशील राष्ट्रवाद को ब्रिटिश सहयोग की आवश्यकता है और इसलिए राष्ट्रीय आंदोलन संवैधानिक और अहिंसक होना चाहिए।  

Revision as of 11:56, 7 June 2017

आर.एन. माधोलकर
पूरा नाम घुनाथ नरसिंह माधोलकर
जन्म 16 मई, 1857
मृत्यु 13 जनवरी, 1921
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष
शिक्षा स्नातक
विद्यालय एलफिंस्टोन कॉलेज
अन्य जानकारी आर.एन. माधोलकर समाज सेवक थे। उन्होंने कई सामाजिक संगठनों की स्थापना की और ग़रीबों के उत्थान के लिए काम किया।

राव बहादुर रघुनाथ नरसिंह माधोलकर (अंग्रेज़ी: Raghunath Narasinha Mudholkar, जन्म: 16 मई, 1857; मृत्यु: 13 जनवरी, 1921) भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने एक अवधि तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वो पंडित बिशन नारायण धर के पद पर रहे। उन्होंने 1912 में (पटना) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 27 वें सत्र की अध्यक्षता की।

परिचय

आर.एन. माधोलकर का जन्म धूलेिया, खानदेश में 16 मई 1857 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। आंशिक रूप से उन्हें धूलिया में और आंशिक रूप से विदर्भ में शिक्षा मिली थी। फिर वह मुम्बई चले गए और वहाँ एलफिंस्टोन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां उन्हें फेलोशिप दी गई। वह अमरावती में जी. एस. खापर्दे और मोरोपंत. वी. जोशी के साथ वकालत कर रहे थे। उनके पुत्र जनार्दन ने 1960 से 1966 के दौरान भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बने।

समाज सुधारक

आर.एन. माधोलकर को जनवरी, 1914 में उनकी सार्वजनिक सेवाओं के सम्मान में उन्हें भारतीय साम्राज्य का संयोजक बनाया गया था। वह एक धर्माधिकारी हिंदू थे। महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और अस्पृश्यता को हटाने जैसे सामाजिक सुधारों की उन्होंने वकालत की। गोपाल कृष्ण गोखले के अनुयायी के रूप में, उनका मानना ​​था कि विकासशील राष्ट्रवाद को ब्रिटिश सहयोग की आवश्यकता है और इसलिए राष्ट्रीय आंदोलन संवैधानिक और अहिंसक होना चाहिए।

आर.एन. माधोलकर 1888 से 1917 तक कांग्रेस में थे और उसके बाद वह लिबरल में शामिल हो गए। 1890 के कांग्रेस प्रतिनिधि मंडल में वह भारतीयों की शिकायतों की आवाज देने के लिए इंग्लैंड भेजे गए थे। वह 1912 में बंकीपौर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र की प्रशंसा की लेकिन ब्रिटिश नौकरशाही का विरोध किया। उन्होंने सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना की, विदर्भ में कई उद्योग स्थापित करने और तकनीकी शिक्षा की वकालत करने में मदद की। उन्होंने कई सामाजिक संगठनों की स्थापना की और ग़रीबों के उत्थान के लिए काम किया।

निधन

आर.एन. माधोलकर का 13 जनवरी, 1921 को उनका निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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