माघ: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण") |
||
Line 15: | Line 15: | ||
*कार्तिक मास में एक हजार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, बैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।। | *कार्तिक मास में एक हजार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, बैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।। | ||
*माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है | *माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है | ||
*माघ मास में कुछ | *माघ मास में कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत होते हैं, यथा– तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी। | ||
*माघ शुक्ल चतुर्थी 'उमा चतुर्थी' कही जाती है, क्योंकि इस दिन पुरुषों और विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा कुन्द तथा कुछ अन्यान्य पुष्पों से उमा का पूजन होता है। साथ ही उनको गुड़, लवण तथा यावक भी समर्पित किये जाते हैं। व्रती को सधवा महिलाओं, ब्राह्मणों तथा गौओं का सम्मान करना चाहिए। | *माघ शुक्ल चतुर्थी 'उमा चतुर्थी' कही जाती है, क्योंकि इस दिन पुरुषों और विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा कुन्द तथा कुछ अन्यान्य पुष्पों से उमा का पूजन होता है। साथ ही उनको गुड़, लवण तथा यावक भी समर्पित किये जाते हैं। व्रती को सधवा महिलाओं, ब्राह्मणों तथा गौओं का सम्मान करना चाहिए। | ||
*माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और [[दशरथ]] ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया, तदनन्तर देवगण ने भगवान [[विष्णु]] को तिलों का स्वामी बनाया। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों से भगवान का पूजन कर तिलों से ही हवन करना चाहिए। तदुपरान्त तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। | *माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और [[दशरथ]] ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया, तदनन्तर देवगण ने भगवान [[विष्णु]] को तिलों का स्वामी बनाया। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों से भगवान का पूजन कर तिलों से ही हवन करना चाहिए। तदुपरान्त तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। |
Revision as of 13:45, 4 January 2011
- माघ हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का ग्यारहवाँ महीना है।
- माघ मास में 'कल्पवास' का विशेष महत्व है। 'माघ काल' में संगम के तट पर निवास को 'कल्पवास' कहते हैं। वेदो यज्ञ-यज्ञदिक कर्म ही 'कल्प' कहे गये हैं। यद्यपि कल्पवास शब्द का प्रयोग पौराणिक ग्रन्थों में ही किया गया है, तथापि माघ काल में संगम के तट पर वास कल्पवास के नाम से अभिहित है। इस कल्पवास का पौष शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर माघ शुक्ल द्वादशी पर्यन्त एक मास तक का विधान है।
- कुछ लोग पौष पूर्णिमा से आरम्भ करते हैं।
- पद्म पुराण में इसका उल्लेख है। संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। संयम, अहिंसा एवं श्रद्धा ही 'कल्पवास' का मूल है।
माघ माहात्म्य
- माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे।
ब्रह्माविष्णु महादेवरूद्रादित्यमरूद्गणा:।। अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।
- प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्।
दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।। अर्थात प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हजार अश्वमेध यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।
- कार्तिक मास में एक हजार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, बैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।।
- माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है
- माघ मास में कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत होते हैं, यथा– तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी।
- माघ शुक्ल चतुर्थी 'उमा चतुर्थी' कही जाती है, क्योंकि इस दिन पुरुषों और विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा कुन्द तथा कुछ अन्यान्य पुष्पों से उमा का पूजन होता है। साथ ही उनको गुड़, लवण तथा यावक भी समर्पित किये जाते हैं। व्रती को सधवा महिलाओं, ब्राह्मणों तथा गौओं का सम्मान करना चाहिए।
- माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया, तदनन्तर देवगण ने भगवान विष्णु को तिलों का स्वामी बनाया। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों से भगवान का पूजन कर तिलों से ही हवन करना चाहिए। तदुपरान्त तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए।
- माघ शुक्ल सप्तमी को इस माघ शुक्ल सप्तमी व्रत का अनुष्ठान होता है। अरुणोदय काल में मनुष्य को अपने सिर पर सात बदर वृक्ष के और सात अर्क वृक्ष के पत्ते रखकर किसी सरिता अथवा स्रोत में स्नान करना चाहिए। तदनन्तर जल में सात बदर फल, सात अर्क के पत्ते, अक्षत, तिल, दूर्वा, चावल, चन्दन मिलाकर सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए तथा उसके बाद सप्तमी को देवी मानते हुए नमस्कार कर सूर्य को प्रणाम करना चाहिए।
- कुछ आकर ग्रन्थों के अनुसार माघ में स्नान तथा इस स्नान में कोई अन्तर नहीं है। जबकि अन्य ग्रन्थों के अनुसार ये दोनों पृथक-पृथक कृत्य हैं।
- माघ मास में बड़े तड़के गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र धारा में स्नान करना परम प्रशंसनीय माना जाता है। इसके लिए सर्वोत्तम काल ब्रह्म मुहूर्त है। जब नक्षत्र दर्शनीय रहते हैं। उससे कुछ कम उत्तम काल वह है जब तारागण टिमटिमा रहे हों। किन्तु सूर्योदय न हुआ हो।
- अधम काल सूर्योदय के बाद स्नान करने का है। माघ मास का स्नान पौष शुक्ल एकादशी अथवा पूर्णिमा से आरम्भ कर माघ शुक्ल द्वादशी या पूर्णिमा को समाप्त होना चाहिए। कुछ इसे संक्रान्ति से परिगणन करते हुए स्नान का सुझाव उस समय देते हैं, जब सूर्य माघ मास में मकर राशि पर स्थित हो।
- समस्त नर-नारियों को इस व्रत के आचरण का अधिकार है। सबसे महान पुण्य प्रदाता माघ स्नान गंगा तथा यमुना के संगम स्थल का माना जाता है।
- पद्म पुराण [1] में माघ स्नान के माहात्म्य को ही वर्णन करने वाले 2800 श्लोक, अध्याय 219 से 250 तक प्राप्त होते हैं; हेमाद्रि, [2] आदि में विस्तृत वर्णन मिलता है।
|
|
|
|
|