शाहू: Difference between revisions
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1689 ई. में [[रायगढ़ महाराष्ट्र]] के पतन के बाद शाहू, उसकी माँ [[येसूबाई]] एवं अन्य महत्वपूर्ण [[मराठा]] लोगों को क़ैंद कर [[औरंगज़ेब]] के शिविर में नज़रबन्द कर दिया गया। उस समय शाहू बालक था और वह बन्दी बनाकर [[मुग़ल]] दरबार में लाया गया। उसका भी वास्तविक नाम शिवाजी था। उसको शिवाजी द्वितीय के नाम से भी जाना जाता था। औरंगज़ेब की दृष्टि में [[शिवाजी|शिवाजी प्रथम]] कपटी थे। अत: दोनों में भेद करने के लिए उसने शाहू को साधु कहना प्रारम्भ किया और यही 'साधु' शब्द अपभ्रंश रूप में शाहू हो गया। 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु के उपरान्त सम्राट [[बहादुरशाह]] ने उसे मुक्त कर दिया। अधिक समय तक मुग़ल दरबार में रहने के कारण शाहू का दृष्टिकोण मराठों-सा न होकर मुग़लों जैसा हो गया था। उसके [[महाराष्ट्र]] लौटते ही मराठे दो दलों में विभक्त हो गए। एक दल उसका स्वयं का था तथा दूसरा दल इसके चाचा [[राजाराम]] के पुत्र शिवाजी तृतीय का समर्थक था। | 1689 ई. में [[रायगढ़ महाराष्ट्र]] के पतन के बाद शाहू, उसकी माँ [[येसूबाई]] एवं अन्य महत्वपूर्ण [[मराठा]] लोगों को क़ैंद कर [[औरंगज़ेब]] के शिविर में नज़रबन्द कर दिया गया। उस समय शाहू बालक था और वह बन्दी बनाकर [[मुग़ल]] दरबार में लाया गया। उसका भी वास्तविक नाम शिवाजी था। उसको शिवाजी द्वितीय के नाम से भी जाना जाता था। औरंगज़ेब की दृष्टि में [[शिवाजी|शिवाजी प्रथम]] कपटी थे। अत: दोनों में भेद करने के लिए उसने शाहू को साधु कहना प्रारम्भ किया और यही 'साधु' शब्द अपभ्रंश रूप में शाहू हो गया। 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु के उपरान्त सम्राट [[बहादुरशाह]] ने उसे मुक्त कर दिया। अधिक समय तक मुग़ल दरबार में रहने के कारण शाहू का दृष्टिकोण मराठों-सा न होकर मुग़लों जैसा हो गया था। उसके [[महाराष्ट्र]] लौटते ही मराठे दो दलों में विभक्त हो गए। एक दल उसका स्वयं का था तथा दूसरा दल इसके चाचा [[राजाराम]] के पुत्र शिवाजी तृतीय का समर्थक था। |
Revision as of 06:53, 15 January 2011
शाहू (शिवाजी द्वितीय)
छत्रपति शिवाजी का पौत्र तथा शम्भुजी का पुत्र और उत्तराधिकारी था। जिसने राजाराम और ताराबाई के पौत्र (शिवाजी तृतीय) को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिये विवश किया। उसी के प्रयासों से मराठा साम्राज्य को एक शक्ति के रूप में संघठित किया जा सका।
मुग़लों का बन्दी
1689 ई. में रायगढ़ महाराष्ट्र के पतन के बाद शाहू, उसकी माँ येसूबाई एवं अन्य महत्वपूर्ण मराठा लोगों को क़ैंद कर औरंगज़ेब के शिविर में नज़रबन्द कर दिया गया। उस समय शाहू बालक था और वह बन्दी बनाकर मुग़ल दरबार में लाया गया। उसका भी वास्तविक नाम शिवाजी था। उसको शिवाजी द्वितीय के नाम से भी जाना जाता था। औरंगज़ेब की दृष्टि में शिवाजी प्रथम कपटी थे। अत: दोनों में भेद करने के लिए उसने शाहू को साधु कहना प्रारम्भ किया और यही 'साधु' शब्द अपभ्रंश रूप में शाहू हो गया। 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्यु के उपरान्त सम्राट बहादुरशाह ने उसे मुक्त कर दिया। अधिक समय तक मुग़ल दरबार में रहने के कारण शाहू का दृष्टिकोण मराठों-सा न होकर मुग़लों जैसा हो गया था। उसके महाराष्ट्र लौटते ही मराठे दो दलों में विभक्त हो गए। एक दल उसका स्वयं का था तथा दूसरा दल इसके चाचा राजाराम के पुत्र शिवाजी तृतीय का समर्थक था।
एकछत्र शासक
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद शाहू अपने कुछ साथियों के साथ वापस महाराष्ट्र आ गया, जहाँ पर परसोजी भोंसले (रघुजी भोंसले तृतीय), भावी पेशवा बालाजी विश्वनाथ और रणोजी सिन्धिया ने उसका साथ दिया। शाहू ने सुयोग्य व्यक्ति बालाजी विश्वनाथ को पेशवा के पद पर आसीन किया। शाहू ने सतारा पर घेरा डालकर वहाँ की तत्कालीन शासिका राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई (शाहू की चाची) के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। ताराबाई ने धनाजी जादव के नेतृत्व में एक सेना को शाहू का मुक़ाबला करने के लिए भेजा। अक्टूबर, 1707 ई. में प्रसिद्ध 'खेड़ा का युद्ध' हुआ, परन्तु कूटनीति का सहारा लेकर शाहू ने जादव को अपनी ओर मिला लिया। ताराबाई ने अपने सभी महत्वपूर्ण अधिकारियों के साथ पन्हाला में शरण ली। शाहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषक करवाया। शाहू के नेतृत्व में नवीन मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्तक पेशवा लोग थे, जो छत्रपति शाहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे, जिनकी सहायता से शाहू मराठों का एकछत्र शासक बन गया।
शक्ति विस्तार
बाजीराव प्रथम तथा बालाजी बाजीराव ने, जो क्रमश: द्वितीय तथा तृतीय पेशवा हुए, शाहू की शक्ति एवं सत्ता का उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में विशेष विस्तार किया। वस्तुत: शाहू ने पेशवा का पद बालाजी विश्वनाथ के वंशजों को पैतृक रूप में दे दिया था और स्वयं राज्यकार्य में विशेष रुचि न लेकर शासन का समस्त भार पेशवाओं पर ही छोड़ दिया। इस नीति के फलस्वरूप राजा नहीं अपितु पेशवा ही मराठा राज्य के सर्वेसर्वा बन गये।
मृत्यु
1749 ई. में शाहू की मृत्यु के बाद पेशवा ही मूल रूप से मराठा साम्राज्य के शासक हो गए। शाहू ने राजाराम और ताराबाई के पौत्र (शिवाजी तृतीय) को अपना दत्तक पुत्र बनाकर उसका नाम राम राजा रखा था। परम्परा के अनुसार राम राजा ने सतारा में अपना दरबार स्थापित किया, किन्तु वह पेशवा के हाथों की कठपुतली ही सिद्ध हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-448
- (पुस्तक 'यूनीक सामान्य अध्ययन' भाग-1) पृष्ठ संख्या-208