चरणपहाड़ी: Difference between revisions

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[[चित्र:Gokul-Chandrama-Temple-Kama-1.jpg|thumb|250px|चन्द्रमा जी मन्दिर, काम्यवन<br /> Chandrama Ji Temple, Kamyavan]]
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*[[ब्रजमण्डल]] के द्वादशवनों में चतुर्थवन [[काम्यवन]] हैं। यह ब्रजमण्डल के सर्वोत्तम वनों में से एक हैं। इस वन की परिक्रमा करने वाला सौभाग्यवान व्यक्ति ब्रजधाम में पूजनीय होता है।<ref>चतुर्थ काम्यकवनं वनानां वनमुत्तमं । तत्र गत्वा नरो देवि ! मम लोके महीयते ।। आ. वा. पुराण</ref>
*[[ब्रजमण्डल]] के द्वादशवनों में चतुर्थवन [[काम्यवन]] हैं। यह ब्रजमण्डल के सर्वोत्तम वनों में से एक हैं। इस वन की परिक्रमा करने वाला सौभाग्यवान व्यक्ति ब्रजधाम में पूजनीय होता है।<ref>चतुर्थ काम्यकवनं वनानां वनमुत्तमं । तत्र गत्वा नरो देवि ! मम लोके महीयते ।। आ. वा. पुराण</ref>
[[चित्र:Charan-Pahadi-Kama-1.jpg|thumb|200px|चरणपहाड़ी, काम्यवन<br /> Charan Pahadi, Kamyavan]]
[[चित्र:Charan-Pahadi-Kama-1.jpg|thumb|left|चरणपहाड़ी, [[काम्यवन]]]]
*[[श्रीकृष्ण]] इस कन्दरा में प्रवेशकर पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने मधुर  वंशीध्वनि की । वंशीध्वनि सुनकर सखियों का ध्यान टूट गया  और उन्होंने पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को वंशी बजाते हुए देखा। वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं । वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये । आज भी वे चरण– चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं । पास में उसी पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे  और सखा खेल रहे थे, उसके पत्थर भी पिघल गये जिस पर उन बछड़ों और सखाओं के चरण– चिह्न अंकित हो गये, जो पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं । लुक–लुकी कुण्ड में जल–क्रीड़ा हुई थी । इसलिए इसे जल–क्रीड़ा कुण्ड भी कहते हैं ।
*[[श्रीकृष्ण]] इस कन्दरा में प्रवेशकर पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने मधुर  वंशीध्वनि की । वंशीध्वनि सुनकर सखियों का ध्यान टूट गया  और उन्होंने पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को वंशी बजाते हुए देखा। वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं । वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये । आज भी वे चरण– चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं । पास में उसी पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे  और सखा खेल रहे थे, उसके पत्थर भी पिघल गये जिस पर उन बछड़ों और सखाओं के चरण– चिह्न अंकित हो गये, जो पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं । लुक–लुकी कुण्ड में जल–क्रीड़ा हुई थी । इसलिए इसे जल–क्रीड़ा कुण्ड भी कहते हैं ।
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Latest revision as of 05:02, 12 July 2011

[[चित्र:Gokul-Chandrama-Temple-Kama-1.jpg|thumb|250px|चन्द्रमा जी मन्दिर, काम्यवन]]

  • ब्रजमण्डल के द्वादशवनों में चतुर्थवन काम्यवन हैं। यह ब्रजमण्डल के सर्वोत्तम वनों में से एक हैं। इस वन की परिक्रमा करने वाला सौभाग्यवान व्यक्ति ब्रजधाम में पूजनीय होता है।[1]

[[चित्र:Charan-Pahadi-Kama-1.jpg|thumb|left|चरणपहाड़ी, काम्यवन]]

  • श्रीकृष्ण इस कन्दरा में प्रवेशकर पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने मधुर वंशीध्वनि की । वंशीध्वनि सुनकर सखियों का ध्यान टूट गया और उन्होंने पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को वंशी बजाते हुए देखा। वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं । वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये । आज भी वे चरण– चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं । पास में उसी पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे और सखा खेल रहे थे, उसके पत्थर भी पिघल गये जिस पर उन बछड़ों और सखाओं के चरण– चिह्न अंकित हो गये, जो पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं । लुक–लुकी कुण्ड में जल–क्रीड़ा हुई थी । इसलिए इसे जल–क्रीड़ा कुण्ड भी कहते हैं ।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चतुर्थ काम्यकवनं वनानां वनमुत्तमं । तत्र गत्वा नरो देवि ! मम लोके महीयते ।। आ. वा. पुराण

बाहरी कड़ियाँ

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