आंग्ल-सिक्ख युद्ध: Difference between revisions

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#द्वितीय युद्ध (1848 - 1849 ई.)
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[[आंग्ल-सिक्ख युद्ध द्वितीय]]
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Revision as of 08:35, 22 July 2011

भारतीय इतिहास में दो सिक्ख युद्ध हुए हैं। इन दोनों ही युद्धों में सिक्ख अंग्रेज़ों से पराजित हुए और उन्हें अंग्रेज़ों से उनकी मनमानी शर्तों के अनुसार सन्धि करनी पड़ी। प्रथम युद्ध में पराजय के कारण सिक्खों को अंग्रेज़ों के साथ 9 मार्च, 1846 ई. को 'लाहौर की सन्धि' और इसके उपरान्त एक और सन्धि, 'भैरोवाल की सन्धि' 22 दिसम्बर, 1846 ई. को करनी पड़ी। इन सन्धियों के द्वारा 'लाल सिंह' को वज़ीर के रूप में अंग्रेज़ों ने मान्यता प्रदान कर दी और अपनी एक रेजीडेन्ट को लाहौर में रख दिया। महारानी जिन्दा कौर को दलीप सिंह से अलग कर दिया गया, जो की दिलीप सिंह की संरक्षिका थीं। उन्हें 'शेखपुरा' भेज दिया गया। द्वितीय युद्ध में सिक्खों ने अंग्रेज़ों के आगे आत्म समर्पण कर दिया। दिलीप सिंह को पेन्शन प्रदान कर दी गई। उसे व रानी जिन्दा कौर को 5 लाख रुपये वार्षिक पेन्शन पर इंग्लैण्ड भेज दिया गया। जहाँ पर कुछ समय बाद ही रानी जिन्दा कौर की मृत्यु हो गई।

युद्ध

इतिहास में जो दो प्रसिद्ध सिक्ख युद्ध लड़े गये, उनका विवरण इस प्रकार से है-

  1. प्रथम युद्ध (1845 - 1846 ई.)
  2. द्वितीय युद्ध (1848 - 1849 ई.)

प्रथम युद्ध

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

1844 ई. में लॉर्ड एलनबरो की जगह लॉर्ड हार्डिंग गवर्नर-जनरल बनकर भारत आया। हार्डिंग ने मेजर 'ब्राडफ़ुट' को पेशावर से पंजाब तक नियंत्रण का स्पष्ट निर्देश दिया। 1845-1846 ई. में हुए सिक्ख युद्ध का परिणाम अंग्रेज़ों के पक्ष में रहा। इस युद्ध के अंतर्गत मुदकी, फ़िरोजशाह, बद्धोवाल तथा आलीवाल की लड़ाइयाँ लड़ी गईं। ये चारों लड़ाइयाँ निर्णायंक नहीं थी। किन्तु पाँचवीं लड़ाई-सबराओ की लड़ाई (10 फ़रवरी, 1846 ई.) निर्णायक सिद्ध हुई। लालसिंह और तेज़ सिंह के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था।

द्वितीय युद्ध

आंग्ल-सिक्ख युद्ध द्वितीय


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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