आठवीं अनुसूची: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 189: Line 189:
</center>
</center>


{{प्रचार}}
==भारतीय मातृभाषाएँ को बोलने वाले व्यक्तियों की संख्या<ref>2001 की जनगणना के अनुसार</ref>==
{{भारतीय भाषाएँ}}
 
 
{{लेख प्रगति  
{{लेख प्रगति  
|आधार=
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3
|माध्यमिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|पूर्णता=
Line 198: Line 201:
}}
}}


{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 14:31, 24 September 2012

संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाएँ
असमिया बांग्ला गुजराती हिन्दी कन्नड़ कश्मीरी
मराठी मलयालम उड़िया पंजाबी संस्कृत तमिल
तेलुगु उर्दू सिंधी कोंकणी मणिपुरी नेपाली
बोडो डोगरी मैथिली संथाली

आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएँ (असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, उर्दू) थीं। बाद में सिंधी को तत्पश्चात् कोंकणी, मणिपुरी[1], नेपाली को शामिल किया गया [2], जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को शामिल किया गया[3] और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गईं।

संघ की भाषा की समीक्षा

  • अनुच्छेद 343 के सन्दर्भ में- संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अनुसार संघ की राजभाषा, देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी घोषित की गई है। इससे देश के बहुमत की इच्छा ही प्रतिध्वनित होती है।

अनुच्छेद 343 (2) के अनुसार इसे भारतीय संविधान लागू होने की तारीख़ अर्थात् 26 जनवरी, 1950 ई. से लागू नहीं किया जा सकता था, अनुच्छेद 343 (3) के द्वारा सरकार ने यह शक्ति प्राप्त कर ली कि वह इस 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रख सकती है। रही–सही क़सर, बाद में राजभाषा अधिनियम, 1963 ने पूरी कर दी, क्योंकि इस अधिनियम ने सरकार के इस उद्देश्य को साफ़ कर दिया कि अंग्रेज़ी की हुक़ूमत देश पर अनन्त काल तक बनी रहेगी। इस प्रकार, संविधान में की गई व्यवस्था 343 (1) हिन्दी के लिए वरदान थी। परन्तु 343 (2) एवं 343 (3) की व्यवस्थाओं ने इस वरदान को अभिशाप में बदल दिया। वस्तुतः संविधान निर्माणकाल में संविधान निर्माताओं में जन साधारण की भावना के प्रतिकूल व्यवस्था करने का साहस नहीं था, इसलिय 343 (1) की व्यवस्था की गई। परन्तु अंग्रेज़ीयत का वर्चस्व बनाये रखने के लिए 343 (2) एवं 343 (3) से उसे प्रभावहीन कर देश पर मानसिक ग़ुलामी लाद दी गई।

  • अनुच्छेद 344 के सन्दर्भ में- अनुच्छेद 344 के अधीन प्रथम राजभाषा आयोग/बी. जी. खेर आयोग का 1955 में तथा संसदीय राजभाषा समिति/जी. बी. पंत समिति का 1957 में गठन हुआ। जहाँ खेर आयोग ने हिन्दी को एकान्तिक व सर्वश्रेष्ठ स्थिति में पहुँचाने पर ज़ोद दिया, वहीं पर पंत समिति ने हिन्दी को प्रधान राजभाषा बनाने पर ज़ोर तो दिया, लेकिन अंग्रेज़ी को हटाने के बजाये उसे सहायक राजभाषा बनाये रखने की वक़ालत की। हिन्दी के दुर्भाग्य से सरकार ने खेर आयोग को महज औपचारिक माना और हिन्दी के विकास के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए; जबकि सरकार ने पंत समिति की सिफ़ारिशों को स्वीकार किया, जो आगे चलकर राजभाषा अधिनियम 1963/67 का आधार बनी, जिसने हिन्दी का सत्यानाश कर दिया।

समग्रता से देखें तो स्वतंत्रता–संग्राम काल में हिन्दी देश में राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक थी, अतएव राष्ट्रभाषा बनी, और राजभाषा अधिनियम 1963 के बाद यह केवल सम्पर्क भाषा होकर ही रह गयी।

प्रादेशिक भाषाएँ एवं 8वीं अनुसूची की समीक्षा

अनुच्छेद 345, 346 से स्पष्ट है कि भाषा के सम्बन्ध में राज्य सरकारों को पूरी छूट दी गई। संविधान की इन्हीं अनुच्छेदों के अधीन हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी राजभाषा बनी। हिन्दी इस समय नौं राज्यों—"उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, राजस्थान, हरियाणाहिमाचल प्रदेश—तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश—दिल्ली"—की राजभाषा है। उक्त प्रदेशों में आपसी पत्र व्यवहार की भाषा हिन्दी है। दिनोंदिन हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी का प्रयोग सभी सरकारी परियोजनाओं के लिए बढ़ता जा रहा है। इनके अतिरिक्त, अहिन्दी भाषी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरातपंजाब की एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़अंडमान निकोबार की सरकारों ने हिन्दी को द्वितीय राजभाषा घोषित कर रखा है तथा हिन्दी भाषी राज्यों से पत्र–व्यवहार के लिए हिन्दी को स्वीकार कर लिया है। अनुच्छेद 347 के अनुसार यदि किसी राज्य का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाय तो राष्ट्रपति उस भाषा को अभिज्ञा दे सकता है। समय–समय पर राष्ट्रपति ऐसी अभिज्ञा देते रहे हैं, जो कि आठवीं अनुसूची में स्थान पाते रहे हैं। जैसे—1967 में सिंधी, 1992 में कोंकणी, मणिपुरी व नेपाली एवं 2003 में बोडो, डोगरी, मैथिली व संथाली। यही कारण है कि संविधान लागू होने के समय जहाँ 14 प्रादेशिक भाषाओं को मान्यता प्राप्त थी, वहीं अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है।

सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय आदि की भाषा की समीक्षा

अनुच्छेद 348, 349 से स्पष्ट हो जाता है कि न्याय व क़ानून की भाषा, उन राज्यों में भी जहाँ हिन्दी को राजभाषा मान लिया गया है, अंग्रेज़ी ही है। नियम, अधिनियम, विनियम तथा विधि का प्राधिकृत पाठ अंग्रेज़ी में होने के कारण सारे नियम अंग्रेज़ी में ही बनाए जाते हैं। बाद में उनका अनुवाद मात्र कर दिया जाता है। इस प्रकार, न्याय व क़ानून के क्षेत्र में हिन्दी का समुचित प्रयोग हिन्दी राज्यों में भी अभी तक नहीं हो सका है।

विशेष निदेश की समीक्षा

अनुच्छेद 350-
भले ही संवैधानिक स्थिति के अनुसार व्यक्ति को अपनी व्यथा के निवारण हेतु किसी भी भाषा में अभ्यावेदन करने का हक़दार माना गया है, लेकिन व्यावहारिक स्थिति यही है कि आज भी अंग्रेज़ी में अभ्यावेदन करने पर ही अधिकारी तवज्जों/ध्यान देना गवारा करते हैं।

अनुच्छेद 351— (हिन्दी के विकास के लिए निदेश)
अनुच्छेद 351 राजभाषा विषयक उपबंध में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें हिन्दी के भावी स्वरूप के विकास की परिकल्पना सन्निहित है। हिन्दी को विकसित करने की दिशाओं का इसमें संकेत है। इस अनुच्छेद के अनुसार संघ सरकार का यह कर्तव्य है कि वह हिन्दी भाषा के विकास और प्रसार के लिए समुचित प्रयास करे ताकि भारत में राजभाषा हिन्दी के ऐसे स्वरूप का विकास हो, जो कि समूचे देश में प्रयुक्त हा सके और जो भारत को मिली–जुली संस्कृति की अभिव्यक्ति की वाहिका बन सके। इसके लिए संविधान में इस बात का भी निर्दश दिया गया है, कि हिन्दी में हिन्दुस्तानी और मान्यताप्राप्त अन्य भारतीय भाषाओं की शब्दावली और शैली को भी अपनाया जाए और मुख्यतः संस्कृत तथा गौणतः अन्य भाषाओं (विश्व की किसी भी भाषा) से शब्द ग्रहण कर उसके शब्द–भंडार को समृद्ध किया जाए। संविधान के निर्मताओं की यह प्रबल इच्छा थी कि हिन्दी भारत में ऐसी सर्वमान्य भाषा के स्वरूप को ग्रहण करे, जो कि सब प्रान्तों के निवासियों को स्वीकार्य हो। संविधान के निर्मताओं को यह आशा थी कि हिन्दी अपने स्वाभाविक विकास में भारत की अन्य भाषाओं से वरिष्ठ सम्पर्क स्थापित करेगी और हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के बीच में साहित्य का आदान–प्रदान भी होगा। संविधान के निर्माताओं ने उचित ढंग से यह आशा की थी कि राजभाषा हिन्दी अपने भावी रूप का विकास करने में अन्य भारतीय भाषाओं का सहारा लेगी। यह इसीलिए था कि राजभाषा हिन्दी को सबके लिए सुलभ और ग्राह्य रूप धारण करना है।

1950 ई. के बाद हिन्दी की संवैधानिक प्रगति

राजभाषा के विकास से सम्बन्धित संस्थाएँ
संस्था का नाम स्थापना कार्य
केन्द्रीय हिन्दी समिति 1967 भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा

हिन्दी केप्रचार–प्रसार के सम्बन्ध में चालू कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करना। अध्यक्ष—प्रधानमंत्री

  • राष्ट्रपति का संविधान आदेश, 1952—राज्यपालों, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति के अधिपत्रों के लिए हिन्दी का प्रयोग प्राधिकृत।
  • राष्ट्रपति का संविधान आदिश, 1955— कुछ प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी के साथ–साथ हिन्दी का प्रयोग निर्धारित, जैसे
  1. जनता के साथ पत्र व्यवहार में
  2. प्रशासनिक रिपोर्ट, सरकारी पत्रिकाओं व संसदीय रिपोर्ट में
  3. संकल्पों (Resolution) व विधायी नियमों में
  4. हिन्दी को राजभाषा मान चुके राज्यों के साथ पत्र व्यवहार में
  5. संधिपत्र और क़रार में
  6. राजनयिक व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारतीय प्रतिनिधियों के नाम जारी किए जाने वाले पत्रों में।
  • प्रथम राजभाषा आयोग/बाल गंगाधर (बी. जी.) खेर आयोग—जून, 1955 (गठन); जुलाई, 1956 (प्रतिवेदन)

आयोग की सिफ़ारिशें

  1. सारे देश में माध्यमिक स्तर तक हिन्दी अनिवार्य की जाएँ।
  2. देश में न्याय देश की भाषा में किया जाए।
  3. जनतंत्र में अखिल भारतीय स्तर पर अंग्रेज़ी का प्रयोग सम्भव नहीं। अधिक लोगों के द्वारा बोली जानेवाली हिन्दी भाषा समस्त भारत के लिए उपयुक्त है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेज़ी का प्रयोग ठीक है, किन्तु शिक्षा, प्रशासन, सार्वजनिक जीवन तथा दैनिक कार्यकलापों में विदेशी भाषा का व्यवहार अनुचित है।

टिप्पणी—आयोग के दो सदस्यों ने—बंगाल के सुनीति कुमार चटर्जी व तमिलनाडु के पी. सुब्बोरोयान— ने आयोग की सिफ़ारिशों से असहमति प्रकट की और आयोग के सदस्यों पर हिन्दी का पक्ष लेने का आरोप लगाया। जो भी हो, प्रथम राजभाषा आयोग/खेर आयोग ने हिन्दी के अधिकाधिक और प्रगामी प्रयोग पर बल दिया था। खेर आयोग ने जो ठोस सुझाव रखे थे, सरकार ने उन्हें महज औपचारिक मानते हुए राजभाषा हिन्दी के विकास के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए।

  • संसदीय राजभाषा समिति/ गोविन्द बल्लभ (जी. बी.) पंत समिति—नवम्बर, 1957 (गठन); फ़रवरी, 1959 (प्रतिवेदन)

पंत समिति ने कहा कि राष्ट्रीय एकता को द्योतित करने के लिए एक भाषा को स्वीकार कर लेने का स्वतंत्रता पूर्व का जोश ठंडा पड़ गया है।

सिफ़ारिशें

  1. हिन्दी संघ की राजभाषा का स्थान जल्दी–से–जल्दी ले। लेकिन इस परिवर्तन के लिए कोई निश्चित् तारीख़ (जैसे–26 जनवरी, 1965 ई.) नहीं दी जा सकती, यह परिवर्तन धीरे–धीरे स्वाभाविक रीति से होना चाहिए।
  2. 1965 ई. तक अंग्रेज़ी प्रधान राजभाषा और हिन्दी सहायक राजभाषा रहनी चाहिए। 1965 के बाद जब हिन्दी संघ की प्रधान राजभाषा हो जाए, अंग्रेज़ी संघ की सहायक/सह राजभाषा रहनी चाहिए।

पंत समिति के सिफ़ारिशों से राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविन्द दास असहमत व असंतुष्ट थे और उन्होंने यह आरोप लगाया कि सरकार ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रास्थापित करने के लिए आवश्यक क़दम नहीं उठाए हैं। इन दोनों नेताओं ने समिति के द्वारा अंग्रेज़ी को राजभाषा बनाये रखने का भी धीरे–धीरे विरोध किया। जो भी हो, सरकार ने पंत समिति की सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया।

  • राष्ट्रपति का आदेश,(1960)— शिक्षा मंत्रालय, विधि मंत्रालय, वैज्ञानिक अनुसंधान व सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय को हिन्दी को राजभाषा के रूप में विकसित करने हेतु विभिन्न निर्देश।
  • राजभाषा अधिनियम, 1963(1967 में संशोधित)— संविधान के अनुसार 15 वर्ष के बाद अर्थात् 1965 ई. से सारा काम–काज हिन्दी में शुरू होना था, परन्तु सरकार की ढुल–मुल नीति के कारण यह सम्भव नहीं हो सका। अहिन्दी क्षेत्रों में, विशेषतः बंगाल और तमिलनाडु (DMK द्वारा) में हिन्दी का घोर विरोध हुआ। इसकी प्रतिक्रिया हिन्दी क्षेत्र में हुई। जनसंघ [4] एवं प्रजा सोशलिस्ट पार्टी/पी. एस. पी. [5] द्वारा हिन्दी का घोर समर्थन किया गया। हिन्दी के घोर कट्टरपंथी समर्थकों ने भाषायी उन्मादों को उभारा, जिसके कारण हिन्दी की प्रगति के बदले हिन्दी को हानि पहुँची। इस भाषायी कोलाहल के बीच प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आश्वासन दिया कि हिन्दी को एकमात्र राजभाषा स्वीकार करने से पहले अहिन्दी क्षेत्रों की सम्मति प्राप्त की जाएगी और तब तक अंग्रेज़ी को नहीं हटाया जाएगा। राजभाषा विधेयक को गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने प्रस्तुत किया। राजभाषा विधेयक का उद्देश्य—जहाँ राजकीय प्रयोजनों के लिए 15 वर्ष के बाद यानी 1965 से हिन्दी का प्रयोग आरम्भ होना चाहिए था, वहाँ व्यवस्था को पूर्ण रूप से लागू न करके उस अवधि के बाद भी संघ के सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी का प्रयोग बनाये रखना।

राजभाषा अधिनियम के प्रावधान

राजभाषा अधिनियम, 1963 में कुल 9 धाराएँ हैं, जिनमें सर्वप्रथम है—26 जून, 1965 से हिन्दी संघ की राजभाषा तो रहेगी ही पर उस समय से हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी भी संघ के उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए बराबर प्रयुक्त होती रहेगी, जिनके लिए वह उस तिथि के तुरन्त पहले प्रयुक्त की जा रही थी। इस प्रकार 26 जून, 1965 से राजभाषा अधिनियम, 1963 के तहत द्विभाषित स्थिति प्रारम्भ हुई, जिसमें संघ के सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाएँ प्रयुक्त की जा सकती थीं।

राजभाषा अधिनियम

राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1967 के अनुसार समय–समय पर संसद के भीतर और बाहर जवाहर लाल नेहरू द्वारा दिए गए आश्वासनों और लाल बहादुर शास्त्री द्वारा राजभाषा विधेयक, 1963 को प्रस्तुत करते समय अहिन्दी भाषियों को दिलाए गए विश्वास को मूर्त रूप प्रदान करने के उद्देश्य से इंदिरा गाँधी, जो अपने पिता की भाँति अहिन्दी भाषियों से सहानुभूति रखती थीं, के शासनकाल में राजभाषा (संशोधन) विधेयक, 1967 पारित किया गया।

राजभाषा अधिनियम के प्रावधान

राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1967 के प्रावधान के अनुसार इस अधिनियम के तहत राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा के स्थान पर नये उपबंध लागू हुए। इसके अनुसार, अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधानमंडलों के द्वारा, जिन्होंने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, संकल्प पारित करना होगा और विधानमंडलों के संकल्पों पर विचार कर लेने के पश्चात् उसकी समाप्ति के लिए संसद के हर सदन द्वारा संकल्प पारित करना होगा। ऐसा नहीं होने पर अंग्रेज़ी अपनी पूर्व स्थिति में बनी रहेगी। इस अधिनियम के द्वारा इस बात की व्यवस्था की गई, कि अंग्रेज़ी सरकार के काम–काज में सहभाषा के रूप में तब तक बनी रहेगी, जब तक अहिन्दी भाषी राज्य हिन्दी को एकमात्र राजभाषा बनाने के लिए सहमत न हो जाएँ। इसका मतलब यह हुआ कि भारत का एक भी राज्य चाहेगा कि अंग्रेज़ी बनी रहे तो वह सारे देश की सहायक राजभाषा बनी रहेगी।

संसद द्वारा पारित संकल्प(1968)

  1. राजभाषा हिन्दी एवं प्रादेशिक भाषाओं की प्रगति को सुनिश्चित करना।
  2. त्रिभाषा सूत्र को लागू करना— एक की भावना के संवर्द्धन हेतु भारत सरकार राज्यों के सहयोग से त्रिभाषा सूत्र को लागू करेगी। त्रिभाषा सूत्र के अंतर्गत यह प्रस्तावित किया गया कि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी व अंग्रेज़ी के अतिरिक्त दक्षिणी भारतीय भाषाओं में से किसी एक को तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषा व अंग्रेज़ी के साथ–साथ हिन्दी को पढ़ाने की व्यवस्था की जाए।

त्रिभाषा सूत्र का प्रयोग सफल नहीं हुआ। न तो हिन्दी क्षेत्र के लोगों ने किसी दक्षिण भारतीय भाषा का अध्ययन किया और न ही ग़ैर–हिन्दी क्षेत्र के लोगों ने हिन्दी का।

राजभाषा नियम (1976)

इन नियमों की संख्या 12 है। जिनमें हिन्दी के प्रयोग के सन्दर्भ में भारत के क्षेत्रों का 3 वर्गीय विभाजन किया गया है और प्रधान राजभाषा हिन्दी और सह राजभाषा अंग्रेज़ी एवं प्रादेशिक भाषाओं के प्रयोग हेतु नियम दिए गए हैं। आज भी इन्हीं नियमों के अनुसार सरकार की द्विभाषिक नीति का अनुपालन हो रहा है।

(A) शिक्षा मंत्रालय के अधीन
संस्था का नाम स्थापना कार्य
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली 1954 ई. साहित्य को बढ़ावा देने वाली शीर्षस्थ संस्था
नेशनल बुक ट्रस्ट (National Book Trust-N.B.T.) 1957 ई. शिक्षा, विज्ञान व साहित्य की उच्च कोटि की पुस्तकों का प्रकाशन कम मूल्यों पर जनता को उपलब्ध कराना।
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय 1960 ई. शब्दकोशों, विश्वकोशों, अहिन्दी भाषियों के लिए पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग 1961 ई. विज्ञान व तकनीक से सम्बन्धित शब्दाविलियों का प्रकाशन।
(B) गृह मंत्रालय के अधीन
संस्था का नाम स्थापना कार्य
राजभाषा विधायी आयोग 1965-75 ई. केन्द्रीय अधिनियमों के हिन्दी पाठ का निर्माण
केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो 1971 ई. देश में अनुवाद की सबसे बड़ी संस्था
राजभाषा विभाग 1975 ई. संघ के विभिन्न शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रगामी प्रयोग से सम्बन्धित सभी मामले
(C) विधि/क़ानून मंत्रालय के अधीन
संस्था का नाम स्थापना कार्य
राजभाषा विधायी आयोग 1975 ई. यह आयोग पहले गृह मंत्रालय के अधीन था। प्रमुख क़ानूनों के हिन्दी पाठ का निर्माण
(D) सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन
संस्था का नाम स्थापना
प्रकाशन विभाग 1944 ई.
फ़िल्म प्रभाग 1948 ई.
पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्ली 1956 ई.
आकाशवाणी 1957 ई.
दूरदर्शन 1976 ई.

भारतीय मातृभाषाएँ को बोलने वाले व्यक्तियों की संख्या[6]

प्रत्येक भाषा के तहत वर्गीकृत भाषा और मातृभाषाओं के नाम व्यक्तियों की संख्या है जो अपनी मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं प्रत्येक भाषा के तहत वर्गीकृत भाषा और मातृभाषाओं के नाम व्यक्तियों की संख्या है जो अपनी मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं
1 असमिया 13,168,484 13 धौंधरी 1,871,130
1 असमिया 12,778,735 14 गढ़वाली 2,267,314
अन्य 389,749 15 गोजरी 762,332
16 हरौती 24,62,867
2 बंगाली 83,369,769 17 हरियाणवी 7,997,192
1 बंगाली 82,462,437 18 हिंदी 257,919,635
2 चकमा 176,458 19 जौनसारी 114,733
3 हैजोंग़ 63,188 20 कांगड़ी 1,122,843
4 राजबंग्सी 82,570 21 खैराड़ी 11,937
अन्य 585,116 22 खड़ी बोली 47,730
23 खोर्ठा 4,725,927
3 बोडो 1,350,478 24 कुल्वी 170,770
1 बोडो 1,330,775 25 कुमायनी 2,003,783
अन्य 19,703 26 कुर्माली 425,920
27 लबानी 22,162
4 डोगरी 2,282,589 28 लामणी 27,07,562
1 डोगरी 2282547 29 लरिया 67,697
अन्य 42 30 लोधी 139,321
31 मगही +1,39,78,565
5 गुजराती 46,091,617 32 मालवी 5565167
1 गुजराती 45,715,654 33 Mandeali 611,930
2 गुजराओ 43,414 34 मारवाड़ी 7,936,183
3 सौराष्ट्र 185,420 35 मेवाड़ी 5,091,697
अन्य 4 147129 36 मेवाती 645,291
37 नागपुरिया 1,242,586
6 हिन्दी 422,048,642 38 निमाडी 2,148,146
1 अवधी 2,529,308 39 पहाड़ी 2,832,825
2 बघेली 2,865,011 40 पंच परजानिया 193769
3 बागड़ी राजस्थानी 1,434,123 41 पेंगवाली 16,285
4 बंजारी 1,259,821 42 पवाड़ी 425,745
5 भद्रावाही 66,918 43 राजस्थानी 18,355,613
6 गद्दी 66246 44 सादरी 2,044,776
7 भोजपुरी 33,099,497 45 सिरमौरी 31144
8 ब्रजभाषा 574245 46 सोंदवारी 59,221
9 बुन्देली 3,072,147 47 सुगाली 160,736
10 चम्बैली 126,589 48 सुरगुजा 1,458,533
11 छत्तीसगढ़ी 13,260,186 49 सुर्जापुरी / सुरजापुरी 12,17,019
12 चुराही 61,199 अन्य 1,47,77,266
- - - -
7 कन्नड़ 37924011 2 उड़िया 32,110,482
1 बड़गा 134,514 3 Proja 92,774
2 कन्नड़ 37742232 4 Relli 21,965
3 कुरुबा / Kurumba 14613 5 Sambalpuri 518,803
अन्य 32,652 अन्य 56,482
8 कश्मीरी 5,527,698 16 पंजाबी 29,102,477
1 कश्मीरी 5,362,349 1 बागड़ी 646,921
2 किश्तवाड़ी 33,429 2 बिलासपुरी / Kahluri 179,511
3 सिराजी 87,179 3 पंजाबी 2,81,52,794
अन्य 44741 अन्य 123,251
9 कोंकणी 2,489,015 17 संस्कृत 14,135
1 कोंकणी 2,420,140 1 संस्कृत 14,099
2 कुडुबी / कुडुम्बी 10192 अन्य 36
3 मल्वाणी 46,851
अन्य 11,832 18 संथाली 6,469,600
1 करमाली 368853
10 मैथिली 12,179,122 2 संताली 5,943,679
1 मैथिली 12,178,673 अन्य 157,068
अन्य 449
19 सिंधी 2,535,485
11 मलयालम 33,066,392 1 कच्छी 823,058
1 मलयालम +3,30,15,420 2 सिंधी 1694061
2 येरावा 19,643 अन्य 18,366
अन्य 31,329
20 तमिल 60793814
12 मणिपुरी 1,466,705 1 कैकड़ी 23,694
1 मणिपुरी 1466497 2 तमिल 60,655,813
अन्य 208 3 येरुकला 69533
अन्य 44,774
13 मराठी 71,936,894
1 मराठी 71,701,478 21 तेलुगु 74,002,856
अन्य 235,416 1 तेलुगू 73,817,148
2 वदारी 171,725
14 नेपाली अन्य 13,983
1 नेपाली 2867922
अन्य 3,827 22 उर्दू 51,536,111
1 उर्दू 51,533,954
15 उड़िया 33,017,446 अन्य 2,157
1 Bhatri 216940


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 21वाँ संशोधन, 1967 ई.
  2. 71वाँ संशोधन, 1992 ई.
  3. 92वाँ संशोधन, 2003
  4. स्थापना—1951 ई., संस्थापक–श्यामा प्रसाद मुखर्जी
  5. स्थापना—1952 ई., संस्थापक–लोहिया
  6. 2001 की जनगणना के अनुसार

संबंधित लेख