देवताध्याय ब्राह्मण: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "{{ब्राह्मण साहित्य}}" to "==सम्बंधित लिंक== {{ब्राह्मण साहित्य2}} {{ब्राह्मण साहित्य}}")
Line 9: Line 9:
*ए॰सी॰ बर्नेल द्वारा सम्पादित मंगलोर, 1873।
*ए॰सी॰ बर्नेल द्वारा सम्पादित मंगलोर, 1873।
*बी॰आर॰ शर्मा द्वारा संपादित तिरुपति संस्करण, 1995।
*बी॰आर॰ शर्मा द्वारा संपादित तिरुपति संस्करण, 1995।
==सम्बंधित लिंक==
{{ब्राह्मण साहित्य2}}
{{ब्राह्मण साहित्य}}
{{ब्राह्मण साहित्य}}
==टीका-टिप्पणी==
==टीका-टिप्पणी==

Revision as of 14:32, 2 June 2010

देवताध्याय ब्राह्मण का आकार अत्यन्त अल्प है और इसमें केवल 4 खण्ड हैं। कतिपय हस्तलेखों और प्रकाशित संस्करणों में मात्र तीन ही खण्ड हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इसमें मुख्य रूप से निधन-भेद से सामों के देवताओं का निरूपण हुआ है।

  • प्रथम खण्ड में देव-नामों का ही विभिन्न सामों के सन्दर्भ में संकलन है।
  • द्वितीय खण्ड में छन्दों के वर्णों और देवताओं का निरूपण हुआ है।
  • तृतीय खण्ड में सामाश्रित छन्दों के नामों की निरुक्तियाँ हैं।
  • चतुर्थ खण्ड में गायत्रसाम की आधारभूत सावित्री के विभिन्न अंगों की विविधदेवरूपता का वर्णन है। सायण ने इस विषय-वस्तु का इसी प्रकार से परिगणन किया है।[1]

देवता-ब्राह्मण में सामगानों के सूक्तों तथा ॠचाओं के नहीं, देवताओं के निर्णय की प्रक्रिया का कथन है। साम-गान के देवताओं के रूप में सर्वप्रथम अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, सोम, वरुण, त्वष्टाङिगरस, पूषा, सरस्वती देवी और इन्द्राग्नी का उल्लेख है। विभिन्न छन्दों के नाम-निर्वचनों का निरुक्त से सादृश्य है। प्रतीत होता है कि दोनों ने ही इन्हें किसी अन्य ब्राह्मण ग्रन्थ से लिया है, क्योंकि दोनों ही किसी ब्राह्मण ग्रन्थ का उल्लेख करते हैं। सम्पूर्ण देवताध्याय ब्राह्मण में सूत्र-शैली का प्रयोग हुआ है। देवताध्याय ब्राह्मण के दो संस्करण अब तक मुद्रित हुए हैं-

  • ए॰सी॰ बर्नेल द्वारा सम्पादित मंगलोर, 1873।
  • बी॰आर॰ शर्मा द्वारा संपादित तिरुपति संस्करण, 1995।

सम्बंधित लिंक

टीका-टिप्पणी

  1. साम्नां निधनभेदेन देवताश्यनादयम्। ग्रन्थोंऽपि नामतोऽन्वर्थाद् देवताध्याय उच्यते॥
    तत्राद्ये बहुधा साम्नां देवता: परिकीर्तिता:। द्वितीये छन्दसां वर्णास्तेषामेव च देवता:। तृतीये तन्निरुक्तिश्चेत्येवं खण्डार्थसंग्रह:॥