दिल्ली समझौता: Difference between revisions

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*'दिल्ली समझौते' के तहत 1930 ई. के बाद जितने भी दमनात्मक अध्यादेश जारी किये गए थे, वे सभी वापस ले लिये गए।
*'दिल्ली समझौते' के तहत 1930 ई. के बाद जितने भी दमनात्मक अध्यादेश जारी किये गए थे, वे सभी वापस ले लिये गए।
*'सत्याग्रह आन्दोलन' के सिलसिले में जो लोग गिरफ़्तार किये गए थे, उन्हें रिहा कर दिया गया।
*'सत्याग्रह आन्दोलन' के सिलसिले में जो लोग गिरफ़्तार किये गए थे, उन्हें रिहा कर दिया गया।
*इस समझौते से [[भारत]] में शांति व्यवस्था कायम होनी थी, और [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] भी वापस ले लिया गया।
*इस समझौते से [[भारत]] में शांति व्यवस्था क़ायम होनी थी, और [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] भी वापस ले लिया गया।
*सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया, और साथ ही [[समुद्र]] तटों के आसपास [[नमक]] की बिक्री खुली कर दी गई।
*सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया, और साथ ही [[समुद्र]] तटों के आसपास [[नमक]] की बिक्री खुली कर दी गई।
*राजनैतिक नज़रिये से बड़ा लाभ यह हुआ कि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, [[लंदन]] में होने वाले [[गोलमेज सम्मेलन]] के दूसरे दौर में भाग लेने के लिए तैयार हो गई।
*राजनैतिक नज़रिये से बड़ा लाभ यह हुआ कि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, [[लंदन]] में होने वाले [[गोलमेज सम्मेलन]] के दूसरे दौर में भाग लेने के लिए तैयार हो गई।

Revision as of 14:16, 29 January 2013

दिल्ली समझौता 5 मार्च, 1931 ई. को तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड इरविन तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी के बीच हुआ था। इस समझौते के अनुसार सत्याग्रह आन्दोलन, जो अप्रैल 1930 ई. में चालू किया गया था, स्थगित कर दिया गया। कांग्रेस राजनीतिक मसले हल करने के लिए गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सहमत हो गयी।

  • 'दिल्ली समझौते' के तहत 1930 ई. के बाद जितने भी दमनात्मक अध्यादेश जारी किये गए थे, वे सभी वापस ले लिये गए।
  • 'सत्याग्रह आन्दोलन' के सिलसिले में जो लोग गिरफ़्तार किये गए थे, उन्हें रिहा कर दिया गया।
  • इस समझौते से भारत में शांति व्यवस्था क़ायम होनी थी, और सविनय अवज्ञा आंदोलन भी वापस ले लिया गया।
  • सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया, और साथ ही समुद्र तटों के आसपास नमक की बिक्री खुली कर दी गई।
  • राजनैतिक नज़रिये से बड़ा लाभ यह हुआ कि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, लंदन में होने वाले गोलमेज सम्मेलन के दूसरे दौर में भाग लेने के लिए तैयार हो गई।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 204 |


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