कटारमल सूर्य मन्दिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 4: Line 4:
====निर्माण====
====निर्माण====
इस सूर्य मन्दिर को "बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर" भी कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान [[आदित्य देवता|आदित्य]] की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बड़ के पेड की लकड़ी से बनी है। मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय [[दिल्ली]] के '[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]]' की दीर्घा में रखा हुआ है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाले इस मन्दिर के बारे में माना जाता है कि के इसे [[मध्य काल]] में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल ने बनवाया था, जो उस समय मध्य [[हिमालय]] में शासन करते थे। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ नागर शैली के वक्र रेखी शिखर सहित निर्मित है। मन्दिर में पहुंचते ही इसकी विशालता और वास्तु शिल्प बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
इस सूर्य मन्दिर को "बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर" भी कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान [[आदित्य देवता|आदित्य]] की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बड़ के पेड की लकड़ी से बनी है। मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय [[दिल्ली]] के '[[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]]' की दीर्घा में रखा हुआ है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाले इस मन्दिर के बारे में माना जाता है कि के इसे [[मध्य काल]] में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल ने बनवाया था, जो उस समय मध्य [[हिमालय]] में शासन करते थे। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ नागर शैली के वक्र रेखी शिखर सहित निर्मित है। मन्दिर में पहुंचते ही इसकी विशालता और वास्तु शिल्प बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
==[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]==
==संरक्षित स्मारक==
पुरातत्व विभाग वास्तु लक्षणों और स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस सूर्य मन्दिर के बनने का समय तेरहवीं सदी बताया गया है। मन्दिर परिसर में स्थित कुछ भाग और [[शिव]], [[पार्वती]], [[गणेश]], लक्ष्मीनारायण, [[नरसिंह अवतार|नृसिंह]], [[कार्तिकेय]] आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मन्दिरों का निर्माण अलग-अलग समय पर किया गया। [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]] द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। अब रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह चुका है।
पुरातत्व विभाग वास्तु लक्षणों और स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस सूर्य मन्दिर के बनने का समय तेरहवीं सदी बताया गया है। मन्दिर परिसर में स्थित कुछ भाग और [[शिव]], [[पार्वती]], [[गणेश]], लक्ष्मीनारायण, [[नरसिंह अवतार|नृसिंह]], [[कार्तिकेय]] आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मन्दिरों का निर्माण अलग-अलग समय पर किया गया। [[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]] द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। अब रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह चुका है।



Revision as of 06:29, 19 February 2013

कटारमल सूर्य मन्दिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के कटारमल नामक स्थान पर स्थित है। इस कारण इसे 'कटरामल सूर्य मंदिर' कहा जाता है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे कुमाऊँ मंडल का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि उड़ीसा के 'कोणार्क सूर्य मन्दिर' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। 'भारतीय पुरातत्त्व विभाग' द्वारा इस मन्दिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। सूर्य देव प्रधान देवताओं की श्रेणी में आते हैं। वे समस्त सृष्टि के आधार स्वरूप हैं। संपूर्ण भारत में भगवान सूर्य देव की पूजा, अराधना बहुत श्रद्धा एवं भक्ति के साथ की जाती है।

इतिहास

इस सूर्य मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। यह मंदिर कोणार्क के विश्वविख्यात सूर्य मंदिर से लगभग दो सौ वर्ष पुराना माना गया है। मंदिर नौवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित हुआ माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना के विषय में विद्वानों में कई मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है। यह सूर्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कटरामल के एक राजा ने करवाया था। प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में कुमाऊँ में कत्यूरी राजवंश का शासन था, जिन्होंने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया था।

निर्माण

इस सूर्य मन्दिर को "बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर" भी कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान आदित्य की मूर्ति किसी पत्थर अथवा धातु की नहीं अपितु बड़ के पेड की लकड़ी से बनी है। मन्दिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी उत्कीर्ण की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय दिल्ली के 'राष्ट्रीय संग्रहालय' की दीर्घा में रखा हुआ है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाले इस मन्दिर के बारे में माना जाता है कि के इसे मध्य काल में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल ने बनवाया था, जो उस समय मध्य हिमालय में शासन करते थे। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ नागर शैली के वक्र रेखी शिखर सहित निर्मित है। मन्दिर में पहुंचते ही इसकी विशालता और वास्तु शिल्प बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

संरक्षित स्मारक

पुरातत्व विभाग वास्तु लक्षणों और स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों के आधार पर इस सूर्य मन्दिर के बनने का समय तेरहवीं सदी बताया गया है। मन्दिर परिसर में स्थित कुछ भाग और शिव, पार्वती, गणेश, लक्ष्मीनारायण, नृसिंह, कार्तिकेय आदि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित क़रीब 44 अन्य मन्दिरों का निर्माण अलग-अलग समय पर किया गया। भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। अब रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह चुका है।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख