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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {'राग मियाँ की मल्हार' का रचयिता किसे माना जाता है?
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| |type="()"}
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| +[[तानसेन]]
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| -[[बैजू बावरा]]
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| -[[अमीर ख़ुसरो]]
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| -[[स्वामी हरिदास]]
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| ||[[चित्र:Akbar-Tansen-Haridas.jpg|अकबर तानसेन-हरिदास|120px|right]][[तानसेन]] सिर्फ़ एक महान गायक ही नहीं, बल्कि एक महान संगीतशास्त्री एवं रागों के रचयिता भी थे। जाति एवं रागों की प्राचीन मान्यताओं को तोड़कर नये प्रयोगों की परंपरा को प्रारम्भ करने में वे अग्रणी थे। [[संगीत]] के क्षेत्र में आज भी तानसेन का प्रभाव जीवित है। उसका कारण है 'मियाँ की मल्हार', 'दरबारी कानडा' और 'मियाँ की तोड़ी' जैसी मौलिक स्वर रचनाओं का सदाबहार आकर्षण।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तानसेन]]
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| {किस [[शास्त्रीय नृत्य]] में मुखौटे का प्रयोग किया जाता है।
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| |type="()"}
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| -[[कत्थक]]
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| +[[कथकली]]
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| -[[ओडिसी]]
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| -[[भरतनाट्यम]]
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| ||[[चित्र:Kathakali-Dance.jpg|कथकली नृत्य, केरल|100px|right]][[केरल]] के दक्षिण - पश्चिमी राज्य का एक समृद्ध और फलने-फूलने वाला [[शास्त्रीय नृत्य]] [[कथकली]] यहाँ की परम्परा है। कथकली का अर्थ है, 'एक कथा का नाटक' या 'एक नृत्य नाटिका'। कथा का अर्थ है, 'कहानी', यहाँ [[अभिनेता]], [[रामायण]] और [[महाभारत]] के महाग्रंथों और [[पुराण|पुराणों]] से लिए गए चरित्रों को अभिनय करते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कथकली]]
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| {'चौक पूरना' [[भारत]] के किस क्षेत्र की लोक कला है?
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| |type="()"}
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| +[[उत्तर प्रदेश]]
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| -[[मध्य प्रदेश]]
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| -[[छत्तीसगढ़]]
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| -[[बिहार]]
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| ||[[चित्र:Tajmahal-1.jpg|ताजमहल, आगरा|100px|right]]उत्तर प्रदेश के कला संग्रहालयों में [[लखनऊ]] स्थित 'राज्य संग्रहालय', [[मथुरा]] स्थित '[[राजकीय संग्रहालय मथुरा|पुरातात्विक संग्रहालय]]', '[[बौद्ध]] पुरातात्विक संग्रहालय, [[सारनाथ]]' प्रमुख हैं। लखनऊ स्थित 'कला एवं हिन्दुस्तानी संगीत' के महाविद्यालय और [[इलाहाबाद]] स्थित 'प्रयाग संगीत समिति' ने देश में [[कला]] व शास्त्रीय संगीत के विकास में बहुत योगदान दिया है। '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]', 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' और [[हिन्दी अकादमी]], [[हिन्दी साहित्य]] के विकास में सहायक रही हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तर प्रदेश]]
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| {'[[उस्ताद ज़ाकिर हुसैन]]' को निम्नलिखित में से किस वाद्ययंत्र को बजाने में विशिष्टता प्राप्त है?
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| |type="()"}
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| -[[सितार]]
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| -[[बांसुरी]]
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| +[[तबला]]
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| -[[संतूर]]
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| ||[[चित्र:Alla-Rakha.jpg|अल्ला रक्खा ख़ाँ|80px|right]]आधुनिक काल में गायन, वादन तथा [[नृत्य कला|नृत्य]] की संगति में [[तबला|तबले]] का प्रयोग होता है। तबले के पूर्व यही स्थान 'पखावज' अथवा [[मृदंग]] को प्राप्त था। कुछ दिनों से तबले का स्वतन्त्र-वादन भी अधिक लोक-प्रिय होता जा रहा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तबला]]
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| {'संगीत यंत्र' [[तबला|तबले]] का प्रचलन किसने किया था?
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| -आदिलशाह ने
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| -[[तानसेन]] ने
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| -[[बैजू बावरा]] ने
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| +[[अमीर ख़ुसरो]] ने
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| ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|अमीर ख़ुसरो और ह्ज़रत निज़ामुद्दीन औलिया|80px|right]]कहा जाता है कि, [[तबला]] हज़ारों साल पुराना वाद्ययंत्र है ,किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि, 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा [[संगीतज्ञ]] [[अमीर ख़ुसरो]] ने 'पखावज' के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]]
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| {'लोसांग उत्सव' कहाँ पर मनाया जाता है? | | {'लोसांग उत्सव' कहाँ पर मनाया जाता है? |
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