गोम्मट पंजिका: Difference between revisions

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*इसमें गोम्मटसार जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड की गाथाओं के विशिष्ट शब्दों और विषमपदों का अर्थ दिया गया है, कहीं कहीं व्याख्या भी संक्षिप्त में दी गई है। यह पंजिका सभी गाथाओं पर नहीं है। इसमें अनेक स्थानों पर सैद्धान्तिक बातों का अच्छा स्पष्टीकरण किया गया है और इसके लिए पंजिकाकार ने अन्य ग्रंथकारों के उल्लेख भी उद्धृत किए हैं।  
*इसमें गोम्मटसार जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड की गाथाओं के विशिष्ट शब्दों और विषमपदों का अर्थ दिया गया है, कहीं कहीं व्याख्या भी संक्षिप्त में दी गई है। यह पंजिका सभी गाथाओं पर नहीं है। इसमें अनेक स्थानों पर सैद्धान्तिक बातों का अच्छा स्पष्टीकरण किया गया है और इसके लिए पंजिकाकार ने अन्य ग्रंथकारों के उल्लेख भी उद्धृत किए हैं।  
*यह पंजिका शक सं0 1016 (वि0 सं0 1151) में बनी है।  
*यह पंजिका शक सं0 1016 (वि0 सं0 1151) में बनी है।  
*विशेषता यह है कि टीकाकार ने इसमें अपनी गुरु परम्परा भी दी हे। यथा-श्रुतकीर्ति, मेघचन्द्र, चन्द्रकीर्ति और गिरिकीर्ति।  
*विशेषता यह है कि टीकाकार ने इसमें अपनी गुरु परम्परा भी दी हे। यथा-श्रुतकीर्ति, मेघचन्द्र, [[चन्द्रकीर्ति]] और गिरिकीर्ति।  
*प्रतीत होता है कि अभयचन्द्राचार्य ने अपनी मन्दप्रबोधिनी टीका में इसे आधार बनाया है। अनेक स्थानों पर इसका उल्लेख किया है।  
*प्रतीत होता है कि अभयचन्द्राचार्य ने अपनी मन्दप्रबोधिनी टीका में इसे आधार बनाया है। अनेक स्थानों पर इसका उल्लेख किया है।  
*इससे स्पष्ट है कि मन्दप्रबोधिनी टीका से यह गोम्मट पंजिका प्राचीन है।  
*इससे स्पष्ट है कि मन्दप्रबोधिनी टीका से यह गोम्मट पंजिका प्राचीन है।  
*प्राकृत पदों का संस्कृत में स्पष्टीकरण करना इस पंजिका की विशेषता है।
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Latest revision as of 13:57, 19 April 2014

  • आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती (10वीं शती) द्वारा प्राकृत भाषा में लिखित गोम्मटसार पर सर्वप्रथम लिखी गई यह एक संस्कृत पंजिका टीका है।
  • इसका उल्लेख उत्तरवर्ती आचार्य अभयचन्द्र ने अपनी मन्दप्रबोधिनी टीका में किया है।[1]
  • इस पंजिका की एकामात्र उपलब्ध प्रति (सं0 1560) पं. परमानन्द जी शास्त्री के पास रही।
  • इस टीका का प्रमाण पाँच हज़ार श्लोक है।
  • इस प्रति में कुल पत्र 98 हैं।
  • भाषा प्राकृत मिश्रित संस्कृत है।[2] दोनों ही भाषाएं बड़ी प्रांजल और सरल हैं। इसके रचयिता गिरिकीर्ति हैं। इस टीका के अन्त में टीकाकार ने इसे गोम्मटपंजिका अथवा गोम्मटसार टिप्पणी ये दो नाम दिए हैं।
  • इसमें गोम्मटसार जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड की गाथाओं के विशिष्ट शब्दों और विषमपदों का अर्थ दिया गया है, कहीं कहीं व्याख्या भी संक्षिप्त में दी गई है। यह पंजिका सभी गाथाओं पर नहीं है। इसमें अनेक स्थानों पर सैद्धान्तिक बातों का अच्छा स्पष्टीकरण किया गया है और इसके लिए पंजिकाकार ने अन्य ग्रंथकारों के उल्लेख भी उद्धृत किए हैं।
  • यह पंजिका शक सं0 1016 (वि0 सं0 1151) में बनी है।
  • विशेषता यह है कि टीकाकार ने इसमें अपनी गुरु परम्परा भी दी हे। यथा-श्रुतकीर्ति, मेघचन्द्र, चन्द्रकीर्ति और गिरिकीर्ति।
  • प्रतीत होता है कि अभयचन्द्राचार्य ने अपनी मन्दप्रबोधिनी टीका में इसे आधार बनाया है। अनेक स्थानों पर इसका उल्लेख किया है।
  • इससे स्पष्ट है कि मन्दप्रबोधिनी टीका से यह गोम्मट पंजिका प्राचीन है।
  • प्राकृत पदों का संस्कृत में स्पष्टीकरण करना इस पंजिका की विशेषता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मन्दप्रबोधिनी गाथा 83
  2. पयडी सील सहावो-प्रकृति: शीलउ -स्वभाव: इत्येकार्थ.......गो0 पं.


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