सैरा नृत्य: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:08, 2 May 2014
सैरा नृत्य बुंदेलखण्ड के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। 'सैरा' नामक लोक गीतों के साथ नाचे जाने के कारण ही इसका नाम ’सैरा नृत्य’ पड़ा है।
- इस नृत्य में सैरा गाने वालों के दल अपने हाथों में लकड़ी के छोटे-छोटे डंडे, जो इसी नृत्य के लिये बनाये जाते हैं, लेकर गोलाकार खड़े हो जाते हैं।
- मधुर लगने वाले सैरा गीत के साथ ही साथ नृत्य प्रारम्भ होता है।
- सैरा नृत्य करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने दाँये-बाँयें दोनों ओर से बढ़ने वाले डंडों पर अपने डंडे बजाता है, जो कि चाँचर का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है।
- नृत्य करने वाले दल के सभी व्यक्ति एक साथ कभी जमीन पर झुकते, कभी निहुरते और कभी बैठकर आड़े-तिरछे हो जाते हैं। इस स्थिति में भी उनके डंडों की चोटें एक साथ समान रूप से पड़ती रहती हैं।[1]
- वर्षा ऋतु के समय सैरा नृत्य बहुत सुहावना लगता है।
- सैरा गीतों के कुछ नमूने निम्नवत हैं-
1. 'असढ़ा तो लागे रे, असढ़ा तो लागे ओ मोरे प्यारे।
दूब गई हरहाय, बीरन लुवौआ आये नहीं घर चुनरी धरी रंगाय।'
2. 'साहुन सुहानी अरे मुरली बजे, भादों सुहानी मोर।
तिरिया सुहानी जबई लगे, ललुवा झूलै पौंर के दोर।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिवासियों के लोक नृत्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 02 मई, 2014।