खेजड़ी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''खेजड़ी''' एक बहुत ही उपयोगी वृक्ष है, जो राजस्थान के...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 5: | Line 5: | ||
*[[रेगिस्तान]] में जब खाने को कुछ नहीं होता, तब खेजड़ी चारा देता है, जो 'लूंग' कहलाता है। इसका [[फूल]] 'मींझर' तथा [[फल]] 'सांगरी' कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। | *[[रेगिस्तान]] में जब खाने को कुछ नहीं होता, तब खेजड़ी चारा देता है, जो 'लूंग' कहलाता है। इसका [[फूल]] 'मींझर' तथा [[फल]] 'सांगरी' कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। | ||
*इसके अन्य नामों में 'घफ़' (संयुक्त अरब अमीरात), 'खेजड़ी', 'जांट/जांटी', 'सांगरी' ([[राजस्थान]]), 'जंड' ([[पंजाब]]), 'कांडी' ([[सिंध]]), 'वण्णि' ([[तमिल भाषा|तमिल]]), 'शमी', 'सुमरी' ([[गुजराती भाषा|गुजराती]]) आते हैं। | *इसके अन्य नामों में 'घफ़' (संयुक्त अरब अमीरात), 'खेजड़ी', 'जांट/जांटी', 'सांगरी' ([[राजस्थान]]), 'जंड' ([[पंजाब]]), 'कांडी' ([[सिंध]]), 'वण्णि' ([[तमिल भाषा|तमिल]]), 'शमी', 'सुमरी' ([[गुजराती भाषा|गुजराती]]) आते हैं। | ||
*[[राजस्थानी भाषा]] में कन्हैयालाल सेठिया की [[कविता]] 'मींझर' बहुत प्रसिद्ध है। यह [[थार रेगिस्तान]] में पाए जाने वाले वृक्ष खेजड़ी के सम्बन्ध में है। इस कविता में खेजड़ी की उपयोगिता और महत्व का सुन्दर चित्रण किया गया है। | *[[राजस्थानी भाषा]] में [[कन्हैयालाल सेठिया]] की [[कविता]] 'मींझर' बहुत प्रसिद्ध है। यह [[थार रेगिस्तान]] में पाए जाने वाले वृक्ष खेजड़ी के सम्बन्ध में है। इस कविता में खेजड़ी की उपयोगिता और महत्व का सुन्दर चित्रण किया गया है। | ||
*[[दशहरा|दशहरे]] के दिन [[शमी वृक्ष]] (खेजड़ी) की [[पूजा]] करने की परंपरा भी है। [[रावण]] दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है, जो [[स्वर्ण]] का प्रतीक मानी जाती है। | *[[दशहरा|दशहरे]] के दिन [[शमी वृक्ष]] (खेजड़ी) की [[पूजा]] करने की परंपरा भी है। [[रावण]] दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है, जो [[स्वर्ण]] का प्रतीक मानी जाती है। | ||
Latest revision as of 09:21, 5 August 2014
खेजड़ी एक बहुत ही उपयोगी वृक्ष है, जो राजस्थान के थार मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर पाया जाता है। यह शमी वृक्ष के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। खेजड़ी वृक्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये तेज गर्मियों के दिनों में भी हरा-भरा रहता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन 1899 में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था, जिसको 'छपनिया अकाल' कहा जाता है, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार अधिक होती है।
- इस वृक्ष का व्यापारिक नाम 'कांडी' है। यह विभिन्न देशों में पाया जाता है, जहाँ इसके अलग-अलग नाम हैं।
- अंग्रेज़ी में यह 'प्रोसोपिस सिनेरेरिया' नाम से जाना जाता है।
- रेगिस्तान में जब खाने को कुछ नहीं होता, तब खेजड़ी चारा देता है, जो 'लूंग' कहलाता है। इसका फूल 'मींझर' तथा फल 'सांगरी' कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है।
- इसके अन्य नामों में 'घफ़' (संयुक्त अरब अमीरात), 'खेजड़ी', 'जांट/जांटी', 'सांगरी' (राजस्थान), 'जंड' (पंजाब), 'कांडी' (सिंध), 'वण्णि' (तमिल), 'शमी', 'सुमरी' (गुजराती) आते हैं।
- राजस्थानी भाषा में कन्हैयालाल सेठिया की कविता 'मींझर' बहुत प्रसिद्ध है। यह थार रेगिस्तान में पाए जाने वाले वृक्ष खेजड़ी के सम्बन्ध में है। इस कविता में खेजड़ी की उपयोगिता और महत्व का सुन्दर चित्रण किया गया है।
- दशहरे के दिन शमी वृक्ष (खेजड़ी) की पूजा करने की परंपरा भी है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है, जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है।
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
|
|
|
|
|