गैटोर जयपुर: Difference between revisions

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Latest revision as of 11:13, 4 October 2014

गैटोर जयपुर
विवरण नाहरगढ़ क़िले की तलहटी में जयपुर के दिवंगत राजाओं की छतरियाँ निर्मित हैं, इस स्थान को गैटोर कहते हैं।
राज्य राजस्थान
ज़िला जयपुर
मार्ग स्थिति गैटोर जयपुर के गनगोरी बाज़ार रोड़ से 4 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि जयपुर के शासकों के स्मारक के लिए प्रसिद्ध है।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
हवाई अड्डा सांगानेर हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन जयपुर जक्शन
बस अड्डा सिन्धी कैम्प, घाट गेट
यातायात ऑटो रिक्शा, टैक्सी, मिनी बस
क्या देखें गढ़़ गणेश मंदिर
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 0141
ए.टी.एम लगभग सभी
चित्र:Map-icon.gif गूगल मानचित्र
संबंधित लेख सिटी पैलेस, गोविंद देवजी का मंदिर, अम्बर क़िला, जयगढ़ क़िला


अन्य जानकारी सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के केनसिंगल म्यूजियम में रखी गई है

गैटोर राजस्थान के जयपुर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ नाहरगढ़़ क़िले की तलहटी में दिवंगत राजाओं की छतरियाँ निर्मित हैं। पुरातत्त्व महत्त्व की अनेक वस्तुएँ यहाँ पाई गई हैं। प्राचीन राजाओं की समाधि-छतरियाँ आदि यहाँ के उल्लेखनीय स्मारक हैं। ये राजस्थान की प्राचीन वास्तुकला के सुन्दर उदाहरण हैं।[1] सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के 'केनसिंगल म्यूजियम' में भी रखी गई है।

गैटोर का अर्थ

18वीं सदी में जयपुर जैसे नियोजित और खूबसूरत शहर की कल्पना करने और उसे साकार रूप देने वाले कछवाहा वंश के राजाओं की दिवंगत आत्माओं का ठौर अगर कहीं है तो वह 'गैटोर' में है। 'गैटोर' शब्द हिन्दी में "गए का ठौर" कथ्य को प्रतिध्वनित करता है।[2]

छतरियाँ

नाहरगढ़ और गढ़गणेश की पहाड़ियों की तलहटी में शांत और सुरम्य स्थल पर जयपुर के राजा, महाराजाओं का समाधि स्थल है। यहाँ जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर अंतिम शासक महाराजा माधोसिंह द्वितीय की समाधियां हैं। हिन्दू राजपूत स्थापत्य कला और पारंपरिक मुग़ल शैली के बेजोड़ संगम का प्रतीक ये छतरियाँ अपनी खूबसूरती के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। दिवंगत राजाओं का दाह संस्कार करने के बाद उस स्थल पर राजा की स्मृति स्वरूप ये समाधियां बनाई गई थीं। सभी समाधियां सबंधित राजा, महाराजा के व्यक्तित्व और उनकी पदवी के अनुसार भव्यता के विभिन्न स्तर छूती हैं।

शिल्पकला

इन छतरियों में सीढ़ीदार चबूतरे के चारों ओर का भाग पत्थर की जालियों से आच्छादित है और केन्द्र में सुंदर खंभों पर छतरियों का निर्माण किया गया है। गैटोर की छतरियाँ मुख्यत: तीन चौकों में निर्मित हैं। चौक के मध्य भाग में जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह की भव्य छतरी है, जो 20 खंभों पर टिकी हुई है। ताज संगमरमर से बनी इस सुंदर समाधि के पत्थरों पर की गई शिल्पकारी अद्भुद है। समाधि के चारों ओर युद्ध, शिकार, वीरता और संगीत प्रियता के शिल्प मूर्तमान हैं। इसी चौक के बाईं ओर राजा सवाई मानसिंह की संगमरमर निर्मित भव्य छतरी है। गौरतलब है कि राजा मानसिंह पोलो के अच्छे खिलाड़ी थे।[2]

इसके अलावा यहाँ महाराजा माधोसिंह द्वितीय और उनके पुत्रों की भी भव्य समाधियां बनी हुई हैं। यहाँ से अगले चौक में एक विशाल छतरी भी है। राजपरिवार के तेरह राजकुमारों और एक राजकुमारी की महामारी से एक साथ हुई मौत के बाद यह छतरी उन सभी की स्मृति में बनाई गई थी। इसी चौक में वटवृक्ष के नीचे भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी है। तीसरे चौक में राजा जयसिंह, महाराजा रामसिंह, सवाई प्रतापसिंह और जगतसिंह की समाधियां हैं। राजा जयसिंह की समाधि मकराना संगमरमर से बनी है तो राजा रामसिंह की समाधि में खूबसूरत इटैलियन संगमरमर का प्रयोग किया गया। इन दोनों समाधियों पर की गई शिल्पकारी राजस्थान की पारंपरिक शिल्पकला का अद्भुद नमूना है।

  • सिसोदिया रानी के बाग़ में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग़ बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग़ है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था।
  • गैटोर की छतरियों से एक प्राचीर के साथ सीढ़ीदार मार्ग टाईगर फोर्ट की ओर भी जाता है। राजपरिवार के लोग यह मार्ग नाहरगढ़ से समाधि स्थल तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल करते थे। वर्तमान में गैटोर की छतरियों का रखरखाव और संरक्षण सिटी पैलेस प्रशासन के अधीन है।[2]

कैसे पहुँचें

इन शाही स्मृतिगाहों तक पहुंचने के लिए आमेर मार्ग से माउण्टेन मार्ग के रास्ते पहुंचा जा सकता है। यह रास्ता ब्रह्मपुरी होते हुए गैटोर निकलता है। पर्यटक यहाँ निजी वाहन या टैक्सी से सुविधायुक्त तरीके से पहुंच सकते हैं। स्थल का भ्रमण करने के लिए 20 रुपया शुल्क रखा गया है, कैमरे का अतिरिक्त चार्ज भी लिया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 295 |
  2. 2.0 2.1 2.2 गए का ठौर-गैटोर (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख