राज मन्दिर अखाड़ा, वाराणसी: Difference between revisions

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राज मन्दिर [[बनारस]] के दो सौ वर्षों तक का तप किया हुआ [[अखाड़ा]] है। इसे मुगदर और जोड़ी का प्रतिष्ठान कहा जाता था। [[काशी]] के विख्यात ‘कुन्नूजी’ के पुत्र श्री रघुनाथ महराज का ‘बलशौर्य’ की दुनिया में महत्वपूर्ण तथा प्रतिष्ठाप्रद स्थान रहा। ‘कून्नू’ जी मुगदर में प्रवीण थे। वे खड़ाऊँ पहन कर जोड़ी फेरा करते। [[स्नान]] के समय पाँच मन का पत्थर काँख में दबा लेते और फिर स्नान करके उन्हें अपने स्थान पर रख देते। वह भारी पत्थर आज भी अतीत की गाथा सुनाता है, जो [[शीतला घाट वाराणसी|शीतला घाट]] पर मौजूद है। वे एक महीने में सवा लाख डण्ड किया करते थे। इनके दो पुत्रों बुच्ची महराज और मन्नू महराज ने अखाड़े की चमक बरकरार रखी, जिसमें बुच्ची महराज तो 93 वर्ष तक प्रौढ़ दिखाई पड़ते थे। वे ब्रह्मचारी थे। उन्हें जोड़ी कला में ‘साफा सम्राट्’ माना जाता था। इसके बाद अनन्तू महराज, कन्हैयाजी तथा केशव महराज ने परम्परा को जीवित रखा। यह अखाड़ा जोड़ियों में काफ़ी नाम कमाया। ‘हाल बाली’, सफेदा, भीम, मरकटैया, भीम भैरो, लाल, काली, नागर, चन्दन आदि जोड़ी में इसका नाम है। इसमें मरकटैया जोड़ी की ज़िले भर में धाक है। इसकी मुठिया पर जो लट्टूनुमा है, वह बताशे की बनावट सा है। वह इतना छोटा है कि अच्छे-अच्छे पहलवानों के छक्के छूट जाते हैं। [[नागपंचमी]] के दिन इन जोड़ियों का प्रदर्शन होता है। अखाड़े के बाहर भीतर जोड़ियों की भरमार है। इस अखाड़े के कुछ प्रमुख महत्वपूर्ण नाम हैं- पकौड़ी महराज, बदाऊ साव, केदार, काशी, बद्री, पाठक, नाटे, बिस्सू, विश्वनाथ, गनेसू सरदार, ननकू देवी बल्लभ, कन्हैया नाऊ, पन्ना लाल, मोहन गोरी तथा चिल्लर।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4/%E0%A4%85%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81/ |title= अखाड़े/व्यायामशालाएँ|accessmonthday=15 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काशीकथा |language=हिंदी }}</ref>
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Latest revision as of 14:01, 16 November 2014

राज मन्दिर बनारस के दो सौ वर्षों तक का तप किया हुआ अखाड़ा है। इसे मुगदर और जोड़ी का प्रतिष्ठान कहा जाता था। काशी के विख्यात ‘कुन्नूजी’ के पुत्र श्री रघुनाथ महराज का ‘बलशौर्य’ की दुनिया में महत्वपूर्ण तथा प्रतिष्ठाप्रद स्थान रहा। ‘कून्नू’ जी मुगदर में प्रवीण थे। वे खड़ाऊँ पहन कर जोड़ी फेरा करते। स्नान के समय पाँच मन का पत्थर काँख में दबा लेते और फिर स्नान करके उन्हें अपने स्थान पर रख देते। वह भारी पत्थर आज भी अतीत की गाथा सुनाता है, जो शीतला घाट पर मौजूद है। वे एक महीने में सवा लाख डण्ड किया करते थे। इनके दो पुत्रों बुच्ची महराज और मन्नू महराज ने अखाड़े की चमक बरकरार रखी, जिसमें बुच्ची महराज तो 93 वर्ष तक प्रौढ़ दिखाई पड़ते थे। वे ब्रह्मचारी थे। उन्हें जोड़ी कला में ‘साफ़ा सम्राट्’ माना जाता था। इसके बाद अनन्तू महराज, कन्हैयाजी तथा केशव महराज ने परम्परा को जीवित रखा। यह अखाड़ा जोड़ियों में काफ़ी नाम कमाया। ‘हाल बाली’, सफेदा, भीम, मरकटैया, भीम भैरो, लाल, काली, नागर, चन्दन आदि जोड़ी में इसका नाम है। इसमें मरकटैया जोड़ी की ज़िले भर में धाक है। इसकी मुठिया पर जो लट्टूनुमा है, वह बताशे की बनावट सा है। वह इतना छोटा है कि अच्छे-अच्छे पहलवानों के छक्के छूट जाते हैं। नागपंचमी के दिन इन जोड़ियों का प्रदर्शन होता है। अखाड़े के बाहर भीतर जोड़ियों की भरमार है। इस अखाड़े के कुछ प्रमुख महत्वपूर्ण नाम हैं- पकौड़ी महराज, बदाऊ साव, केदार, काशी, बद्री, पाठक, नाटे, बिस्सू, विश्वनाथ, गनेसू सरदार, ननकू देवी बल्लभ, कन्हैया नाऊ, पन्ना लाल, मोहन गोरी तथा चिल्लर।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अखाड़े/व्यायामशालाएँ (हिंदी) काशीकथा। अभिगमन तिथि: 15 जनवरी, 2014।

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