नचारी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''नचारी''' बिहार के मिथिला जनपद तथा वहीं के प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 43: Line 43:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{गायन शैली}}
[[Category:बिहार]][[Category:बिहार की संस्कृति]][[Category:संस्कृति कोश]]
[[Category:बिहार]][[Category:बिहार की संस्कृति]][[Category:गायन शैली]][[Category:गीत]][[Category:संस्कृति कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 13:09, 2 May 2015

नचारी बिहार के मिथिला जनपद तथा वहीं के प्रभाव से अन्यत्र भी प्रचलित शिवभक्ति अथवा शिवोपासनापरक गीतों को कहा जाता है। ये गीत बहुधा भक्ति-भावना की तरंग में नाचकर गाये जाते हैं। 'नाचना' क्रिया से ही इसकी शाब्दिक व्युत्पत्ति बतायी जाती है।[1]

लोकप्रियता

‘नचारी’ नामक गीत मिथिला में बहुत लोकप्रिय हुए हैं। मैथिल साधु अथवा भिखमंगे इन गीतों को गाकर भिक्षार्जन करते हैं। मैथिल स्त्रियाँ विवाह अथवा अन्य मांगलिक अवसरों पर ‘नचारी’ का उपयोग हास्य तथा व्यंग्य गीतों के रूप में करती हैं।

विद्यापति का योगदान

‘मैथिल कोकिल’ कहे जाने वाले विद्यापति ने बहुत-सी नचारियाँ लिखी थीं। उनकी इस शैली की अनेक रचनाएँ अभी लोक-जीवन में ही प्रचलित हैं और इनका संकलन तथा सम्पादन ठीक तरह से नहीं हो पाया है। विद्यापति की पदावली से इस कोटि की एक रचना आंशिक रूप में दृष्टव्य है[1]-

“कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ। दुखहि जनम भेल, दुखहि गमाएव, सुख सपनहुँ नहिं भेल, हे भोलानाथ।“

महेशबानी

महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने 'महेशबानी' और 'नचारी' के नाम से शिवभक्ति से सम्बन्धित अनेक गीतों की रचना की। महेशबानी में जहाँ शिव के परिवार के सदस्यों का वर्णन, देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर का फक्कर स्वरुप, दुनिया के लिए दानी, अपने लिए भिखारी का वेष, भूत-प्रेत, नाग, बसहा बैल, मूसे और सयुर सभी का एक जगह समन्वय, चिता का भष्म शरीर में लपेटना, भागं-धतूरा पीना आदि शामिल है, तो दूसरी ओर नचारी में एक भक्त भगवान शिव के समक्ष अपनी विवशता या दु:ख नाचकर या लाचार होकर सुनाता है।[2] 'महेशबानी' का एक उदाहरण निम्न प्रकार है-

अगे माई जोगिया मोर जगत सुखदायक।
दुख ककरो नहिं देल।।
दुख ककरो नहिं देल महादेव, दुख ककरो नहिं देल।
अहि जोगिया के भाँग भुलैलक।
धथुर खुआइ धन लेल।।
आगे माई कार्तिक गणपति दुइ छनि बालक।
जगभर के नहिं जान।।
तिनकहँ अमरन किछुओं न थिकइन।
रत्ती एक सोन नहिं कान।।
अगे माई, सोन रुप अनका सुत अमरन।।
अधन रुद्रक माल।
अप्पन पुत लेल किछुओ ने जुड़ैलन।।
अनका लेल जंजाल।
अगे माई छन में हेरथि कोटि धन बकसथि।।
ताहि दबा नहिं थोर।
भनहि बिद्यापति सुनु ए मनाईनि
थिकाह दिगम्बर मोर।।

मैथिली गीत 'नचारी'

मैथिली भाषा का एक नचारी गीत इस प्रकर है[3]-

तर बहु गँगा, उपर बहु जमुना, बिचे बहु सरस्वती धार गे माई
ताही ठाम शिवजी पलंग बिछाओल, जटाके देलखिन छिरिआई गे माई॥
फुल लोढ गेलनी गौरी कुमारी, आँचर धय लेल बिल माई गे माई
छोरु छोरु आहे शिव मोरे आँचरवा, हम छी बारी कुमारी गे माई॥
बाबा मोरा सुन्ता हाती चढि ऐता, भैया बन्दुक लय देखावे गे माई
अम्मा सुनती जहर खाय मरति, भावी मोरा खुशी भय बैसती गे माई॥
सेहो सुनी शिवजी सिन्दुर बेसाहल, गौरी बेटी राखल बयाही गे माई॥


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 310 |
  2. मिश्र, पूनम। विद्यापति का शिव प्रेम और उगना की लोककथा (हिन्दी) इग्नका। अभिगमन तिथि: 02 मई, 2015।
  3. मैथिली गीता - नचारी (हिन्दी) सोन्ग्स मैथिली.कॉम। अभिगमन तिथि: 02 मई, 2015।

संबंधित लेख