कुश्ती की पद्धतियाँ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('भारतीय कुश्ती का विशेष महत्व है, इसलिए इन क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
Line 6: Line 6:
====भीमसेनी कुश्ती ====
====भीमसेनी कुश्ती ====
इस कुश्ती का नाम महाभारत पाण्डव भीम के नाम पर है। इस कुश्ती में शरीर की शक्ति का विशेष होता महत्व है।
इस कुश्ती का नाम महाभारत पाण्डव भीम के नाम पर है। इस कुश्ती में शरीर की शक्ति का विशेष होता महत्व है।
==हनुमंती कुश्ती==
====हनुमंती कुश्ती====
एक रणनीति के आधार पर दुश्मन से उबरने के लिए यह कुश्ती बनाई है। हनुमंती कुश्ती में दाँव पेंच और कला की प्रधानता होती है।   
एक रणनीति के आधार पर दुश्मन से उबरने के लिए यह कुश्ती बनाई है। हनुमंती कुश्ती में दाँव पेंच और कला की प्रधानता होती है।   
====जाबवंती कुश्ती====
====जाबवंती कुश्ती====

Revision as of 11:38, 14 August 2015

भारतीय कुश्ती का विशेष महत्व है, इसलिए इन कुश्तीयों को एक विशेष नाम से जाना जाता है। भारतीय कुश्ती को निम्न चार पद्धतियों में बाटाँ गया है-

  1. भीमसेनी कुश्ती
  2. हनुमंती कुश्ती
  3. जांबवंती कुश्ती
  4. जरासंधी कुश्ती

भीमसेनी कुश्ती

इस कुश्ती का नाम महाभारत पाण्डव भीम के नाम पर है। इस कुश्ती में शरीर की शक्ति का विशेष होता महत्व है।

हनुमंती कुश्ती

एक रणनीति के आधार पर दुश्मन से उबरने के लिए यह कुश्ती बनाई है। हनुमंती कुश्ती में दाँव पेंच और कला की प्रधानता होती है।

जाबवंती कुश्ती

जाबवंती कुश्ती में हाथ-पैर से इस प्रकार प्रयास किया जाता है कि प्रतिस्पर्धी चित्त न कर पाए, उसमें शारीरिक शक्ति और दाँवपेंच की अपेक्षा शरीर साधना का महत्व है।

जरासंधी कुश्ती

इस कुश्ती का नाम राक्षस जरासंध के नाम पर है, इसमें में हाथ-पाँव मोड़ने का प्रयास प्रधान है।

मल्लयुद्ध में प्रसिद्धि

मल्लयुद्ध के माध्यम से भारत का विदेशों में संपर्क व प्रसिद्धि 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में हुआ। सन 1892 ई. में इंग्लैंड का प्रसिद्ध मल्ल टाम कैनन, रुस्तमेहिंद गुलाम से लड़ने के लिए भारत आया, किंतु वह गुलाम के शिष्य करीम बख्श से हारकर लौट गया। गुलाम का छोटा भाई कल्लू भी अपने युग का प्रसिद्ध पहलवान था। उस समय के अन्य प्रसिद्ध मल्लों में किक्करसिंह का नाम उल्लेखनीय है, जिसका भार लगभग 7 मन तथा वक्ष:स्थल की परिधि 70 इंच थी। सन 1900 ई. में स्वर्गीय मोतीलाल नेहरू, गुलाम तथा कल्लू को लेकर पेरिस की विश्व प्रदर्शिनी में गए। गुलाम की कुश्ती यूरोप के प्रसिद्ध मल्ल अहमद मद्राली से हुई जो बराबर पर छूटी। गुलाम की मृत्यु के पश्चात कल्लू रुस्तमेहिंद हुए।[1]

रुस्तमेंहिंद की उपाधि

सन 1910 ई. में, रुस्तमेहिंद के रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए प्रयाग में एक विराट दंगल का आयोजन हुआ। इसमें गामा की कुश्ती रहीम पहलवान से हुई। चोट आ जाने के कारण रहीम को अखाड़ा छोड़ना पड़ा और गामा रुस्तमेहिंद हुए। इसके पूर्व गामा ने अपने भाई इमाम बख्श तथा अन्य मल्लों के साथ इंग्लैंड की यात्रा की थी। वहाँ इन्होंने बेंजामिन लोलर पर, तथा इमामबख्श ने स्विट्ज़रलैंड के निपुण मल्ल जान लेम पर विजय प्राप्त की। इसके पश्चात गामा की कुश्ती पोलैंड के प्रसिद्ध मल्ल जिविस्को से हुई। प्रथम दिन, दो घंटे पैंतालीस मिनट तक मल्लयुद्ध हुआ, किंतु जिविस्को चित्त नहीं किया जा सका। इन मल्लों की कुश्ती पुन: दूसरे दिन होने का निश्चय किया गया, किंतु जिविस्को इंग्लैंड छोड़कर भाग खड़ा हुआ। दूसरे वर्ष, अहमद बख्श ने मॉरिरा डेरियाज तथा आरमैंड चेयरपिलोड को परास्त कर भारतीय मल्ल-युद्ध-पद्धति का गौरव बढ़ाया। सन 1928 ई. में जिविस्को गामा से मल्लयुद्ध करने भारत आए, किंतु इस बार गामा ने इन्हें 42 सेकेंड में ही परास्त कर दिया। गामा की अंतिम कुश्ती जे. सी. पीटरसन से हुई, जो अपने को सर्वजेताओं का विजेता[2] कहता था। गामा ने उसे 1 मिनट 45 सेकेंड में ही हरा दिया। अपने को विश्व विजयी समझकर गामा नेसन 1915 में रुस्तमेहिंद की पदवी के लिए अपने भाई इमाम बख्श को खड़ा किया। रहीम, जिसकी अवस्था ढल चुकी थी, पुन: मैदान में आया, किंतु इमाम बख्श विजयी हुआ और उसने रुस्तमेंहिंद की उपाधि धारण की।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Error on call to Template:cite web: Parameters url and title must be specified (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2015।
  2. चैंपियन ऑव चैंपियन्स

संबंधित लेख