संशय सर्प ग्रसन उरगाद: Difference between revisions
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Revision as of 09:11, 18 May 2016
संशय सर्प ग्रसन उरगाद
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः॥ |
- भावार्थ
जो संशयरूपी सर्प को ग्रसने के लिए गरुड़ हैं, अत्यंत कठोर तर्क से उत्पन्न होनेवाले विषाद का नाश करनेवाले हैं, आवागमन को मिटानेवाले और देवताओं के समूह को आनंद देनेवाले हैं, वे कृपा के समूह राम सदा हमारी रक्षा करें।॥5॥
left|30px|link=अरुण नयन राजीव सुवेशं|पीछे जाएँ | संशय सर्प ग्रसन उरगाद | right|30px|link=निर्गुण सगुण विषम सम रूपं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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