मोह विपिन घन दहन कृशानु: Difference between revisions
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मोह विपिन घन दहन कृशानु
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
मोह विपिन घन दहन कृशानुः। संत सरोरुह कानन भानुः॥ |
- भावार्थ
जो मोहरूपी घने वन को जलाने के लिए अग्नि हैं, संतरूपी कमलों के वन को प्रफुल्लित करने के लिए सूर्य हैं, राक्षसरूपी हाथियों के समूह को पछाड़ने के लिए सिंह हैं और भव (आवागमन) रूपी पक्षी को मारने के लिए बाज रूप हैं, वे प्रभु सदा हमारी रक्षा करें।॥3॥
left|30px|link=श्याम तामरस दाम शरीरं|पीछे जाएँ | मोह विपिन घन दहन कृशानु | right|30px|link=अरुण नयन राजीव सुवेशं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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