केहि हेतु रानि रिसानि: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कविता भाटिया (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 40: | Line 40: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
'हे रानी! किसलिए रूठी हो?' यह कहकर राजा उसे हाथ से स्पर्श करते हैं, तो वह उनके हाथ को (झटककर) हटा देती है और ऐसे देखती है मानो क्रोध में भरी हुई नागिन क्रूर दृष्टि से देख रही हो। दोनों (वरदानों की) वासनाएँ उस नागिन की दो जीभें हैं और दोनों वरदान दाँत हैं, वह काटने के लिए मर्मस्थान देख रही है। [[तुलसीदास|तुलसीदासजी]] कहते हैं कि [[राजा दशरथ]] होनहार के वश में होकर इसे (इस प्रकार हाथ झटकने और नागिन की भाँति देखने को) कामदेव की क्रीड़ा ही समझ रहे हैं। | 'हे रानी! किसलिए रूठी हो?' यह कहकर राजा उसे हाथ से स्पर्श करते हैं, तो वह उनके हाथ को (झटककर) हटा देती है और ऐसे देखती है मानो क्रोध में भरी हुई नागिन क्रूर दृष्टि से देख रही हो। दोनों (वरदानों की) वासनाएँ उस नागिन की दो जीभें हैं और दोनों वरदान दाँत हैं, वह काटने के लिए मर्मस्थान देख रही है। [[तुलसीदास|तुलसीदासजी]] कहते हैं कि [[राजा दशरथ]] होनहार के वश में होकर इसे (इस प्रकार हाथ झटकने और नागिन की भाँति देखने को) [[कामदेव]] की क्रीड़ा ही समझ रहे हैं। | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= बार बार कह राउ सुमुखि}} | {{लेख क्रम4| पिछला=कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= बार बार कह राउ सुमुखि}} | ||
'''छंद'''- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख '[[ऋग्वेद]]' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक [[व्याकरण]] है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है। | '''छंद'''- छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख '[[ऋग्वेद]]' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक [[व्याकरण]] है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है। | ||
Latest revision as of 08:35, 24 May 2016
केहि हेतु रानि रिसानि
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
- दशरथ-कैकेयी संवाद और दशरथ शोक, सुमन्त्र का महल में जाना और वहाँ से लौटकर श्री रामजी को महल में भेजना
केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि नेवारई। |
- भावार्थ
'हे रानी! किसलिए रूठी हो?' यह कहकर राजा उसे हाथ से स्पर्श करते हैं, तो वह उनके हाथ को (झटककर) हटा देती है और ऐसे देखती है मानो क्रोध में भरी हुई नागिन क्रूर दृष्टि से देख रही हो। दोनों (वरदानों की) वासनाएँ उस नागिन की दो जीभें हैं और दोनों वरदान दाँत हैं, वह काटने के लिए मर्मस्थान देख रही है। तुलसीदासजी कहते हैं कि राजा दशरथ होनहार के वश में होकर इसे (इस प्रकार हाथ झटकने और नागिन की भाँति देखने को) कामदेव की क्रीड़ा ही समझ रहे हैं।
left|30px|link=कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी|पीछे जाएँ | केहि हेतु रानि रिसानि | right|30px|link=बार बार कह राउ सुमुखि|आगे जाएँ |
छंद- छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख